________________
37
- धर्मरसायन
यदि पूर्वोक्त हरि (विष्णु), हर (शंकर) आदि सभी देव हैं तो वे हाथ में तीक्ष्ण शस्त्रों को किसलिए धारण करते हैं ?
जस्स थिभयं वि(चि)चेसोगिण्हइआउहंकरग्गेणा जस्सपुणोणत्थिभयंतस्साउहकारणंणस्थि||116॥
यस्यास्ति भयं चित्ते स गृह्णाति आयुधं कराग्रेण| यस्य पुनर्नास्तिभयंतस्यायुधकारणंनास्ति||116।।
क्योंकि जिसके मन में भय है वही हाथ में आयुध (शास्त्रास्त्र) धारण करता है, किन्तु जिसे किसी का भय नहीं है, उसे आयुध की आवश्यकता नहीं होती।
छुहतण्हवाहिवेयणचिंताभयसोयपीडियसरीरा। संसारे हिंडता ते सव्वण्डू कहं होति ॥117|| क्षुधातृष्णाव्याधिवेदनाचिन्ताभयशोकपीडितशरीराः। संसारे हिण्डमानाः ते सर्वज्ञा कथं भवन्ति ।।117||
जो भूख, प्यास, व्याधि, वेदना, चिन्ता, भय तथा शोक से पीड़ित शरीर वाले होकर संसार में भटक रहे हैं, वे सर्वज्ञ कैसे हो सकते हैं? [यह संकेत, श्वेताम्बर परम्परा अर्हन्त (सर्वज्ञ) में जो ग्यारह परिषह मानती है, उसके सम्बन्ध में भी हो सकता है।]
छुह तण्हा भय दोसो राओ मोहो य चिंतणं वाही। जरमरण जम्म णिहा खेदो सेदो विसादोय।।11811 रइ जिंभओ य दप्पो एए दोसा तिलोयसत्ताणं । सव्वेसिं सामण्णा संसारे परिभमंताणं ॥11911
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org