________________
धर्मरसायन
-36
जो अपनी माता के पेटको फाड़कर बाहर निकल आया वह बुद्ध अन्य जीवों के प्रति दयावान् कैसे हो सकता है ?
जो अप्पणो सरीरे ण समत्थो वाहिवेयणा छेउं । अण्णेसिं जीवाणं कह वाहिं णासए सूरो ।।113॥ य आत्मनः शरीरे न समर्थो व्याधिवेदनां छेत्तुम् । अन्येषां जीवानांकथं व्याधिं नाशयति सूरः' ||113||
जो अपने शरीर में स्थित व्याधिजन्य वेदना (पीडा) का भी नाश करने में समर्थनहीं है, वह सूर्य अन्य जीवों की व्याधि का नाश कैसे कर सकता है ? [यह कथनचन्द्रमा (सोम), बुद्ध तथा श्वेताम्बरों में मान्यमहावीर के सम्बन्ध में भी संगत हो सकता है।
ण समत्थो रक्खेउंसयमवि खे राहुणा गसिज्जंतो। कह सो होइसमत्थो रक्खेउं अण्णजीवाणं॥114|| न समर्थो रक्षितुम् स्वयमपि खे राहुणा असमानः । कथं स भवति समर्थोरक्षितुम् अन्य जीवान्।।114||
आकाश में राहु के द्वारा ग्रसित किया जाता हुआ जो सूर्य स्वयं की भी रक्षा करने में समर्थ नहीं है वह अन्य जीवों की रक्षा करने में समर्थ कैसे हो सकता है?
जइ ते हवंति देवा एए सव्वे वि हरिहराईया । तोतिक्खपहरणाइंगिण्हंतिकरण णिकजं॥115।। यदि ते भवन्ति देवा एते सर्वेऽपि हरिहरादिकाः । तर्हि तीक्ष्णप्रहरणानि गृहणन्ति करेण किमर्थम्।।115।। सूर्यः
1.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org