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- धर्मरसायन
हरिहब्रह्माणोऽपिच महाबला सर्वलोकविख्याताः। त्रयोऽपिएकशरीराःत्रयोऽपिलोकेऽपिपरमात्मानः।।109|| यदि भवति एकमूर्तिः ब्रह्मा त्रिलोकनाथ: मधुमथ: । तर्हि ब्रह्मणः शिरो हरेण किं कारणं छिन्नम्।।11011
समस्त लोकों में विख्यात हरि (विष्णु), हर (शंकर) तथा ब्रह्मा महाबली, तीनों एक शरीर वाले अर्थात् अभिन्न हैं और तीनों ही लोक में परमात्मा के रूप में विश्रुत हैं। पुनः यदि ब्रह्मा, त्रिलोचन (शंकर) तथा मधुरिपु (विष्णु) ये तीनों एकमूर्ति अर्थात् अभिन्न हैं, तो फिर ब्रह्मा का सिर शंकर के द्वारा कैसे काट दिया गया ?
णेच्छइ थावरजीवं जंगमजीवेसु संसओ जस्स । मंसं जस्स अदोसं कह बुद्धो होइ परमप्पा ।।111|| नेच्छति स्थावरजीवं जङ्गमजीवेषु संशयो यस्य । मांसं यस्यादोषं कथं बुद्धो भवति परमात्मा ।।111।।
जो स्थावर अर्थात् पृथ्वी, अपस्, अग्नि, वायु और वनस्पति को जीव नहीं मानता है और त्रस (जंगम) जीवों के अस्तित्व में भी जिसे सन्देह है अर्थात् जो अनात्मवादी है; जिसने मांसाहार को निर्दोष माना है वह बुद्ध परमात्मा कैसे हो सकता है?
णिये'जणणीए पेटें जो फाडिऊण णिग्गओ बहिरं। अण्णेसिं जीवाणं कह होइ दयावरो बुद्धो 111211 निजजनन्या उदरं यो विदार्य निर्गतो बहिः । अन्येषां जीवानां कथं भवति दयापरो बुद्धः।।112||
नियं
2. 3.
पोठं वहं
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