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धर्मरसायन
कोई भी खाद्य आहार न मिलने पर वह (पापी) भूख से संतप्त होकर वैतरणी के तट पर बैठकर मिट्टी खाने लगता है ।
ताए पुणो वि डज्झइ लोहंगारेहिं पज्जलंताए ।
घोराए
कडुपाइअपूइयमयसाणगंधाए ॥38॥
तया पुनरपि दह्यते लोहाङ्गारैः प्रज्वलन्त्या । घोरया कटुकपूतिमयश्वगन्धया
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जिससे सड़े (मवाद पड़े) हुए कुत्ते जैसी घोर दुर्गन्ध आ रही है तथा लपटें उठ रही हैं ऐसी वैतरणी की मिट्टी भी लाल-लाल अंगारों से उसे जलाने लगती है।
सो एवं अच्छंतो णइकूले पिच्छिऊण णारइया । कडुयाई जंपमाणा पुणरवि धावंति पाविट्ठा ॥39॥ तमेवं तिष्ठन्तं नदीकूले दृष्ट्वा नारकाः । कटुकानि जल्पन्तः पुनरपि धावन्ति पापिष्ठाः ||39||
उसे वैतरणी नदी के किनारे इस प्रकार बैठा हुआ देखकर अत्यन्त पापी नरकवासी कटुवचन बोलते हुए पुनः उसके पीछे भागते हैं ।
वेण वहंताए पतत्ततेलव्व पज्जलंताए । वेयरणीए मज्झे चप्पंति अणप्पवसिया हु |14011
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वेगेन वहन्त्याः प्रतप्ततैलवत् प्रज्वलन्त्याः । वैतरण्या मध्ये प्रविशन्ति अनात्मवशिका हि ॥40॥
अपने वश में न होने अर्थात् विवश होने से वे वेग से बहती हुई तथा खौलते तेल की भाँति जलती हुई वैतरणी के मध्य प्रवेश करते हैं।
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