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________________ -धर्मरसायन पावंति केइधम्मादो माणुससोक्खाइंदेवसोक्खाई। अव्वावाहमणोवमअणंतसोक्खं च पावंति ।।13। प्राप्नुवन्ति केचिद्धर्मतः मानुषसौख्यानि देवसौख्यानि । अव्याबाधमनुपमानन्तसौख्यं च प्राप्नुवन्ति ||13|| कुछ लोग धर्म के द्वारा मानव-सुखों तथा देव-सुखों को प्राप्त करते हैं तथा अव्याबाध, अनुपम और अनन्त सुखों को भोगते हैं। तम्हा हु सव्वधम्मा परिक्खयव्वा णरेण कुसलेण। सो धम्मो गहियव्वो जो वोसेहिं विबजिओ विमलो ॥14॥ तस्माद्धि सर्वधर्माः परीक्षितव्या नरेण कुशलेन । सधर्मो गृहीतव्यो यो दोषैर्विवर्जितो विमलः।।14|| इसलिए कुशल मनुष्य को सभीधर्मों की परीक्षा करनी चाहिए और उसीधर्म का ग्रहण करना चाहिए जो दोषों से रहित अर्थात् निर्मल हो। जत्थ वहो जीवाणं भासिज्जइ जत्थ अलियवयणं च । जत्थ परवव्वहरणं सेविजइ जत्थ परयाणं ।।15।। बहुआरंभपरिग्गहगहणं संतोस वज्जिअं जत्थ । पंचुंबरमहुमांसं भक्खिज्जइ जत्थ धम्मम्मि ।।16।। इंभिज्जइ जत्थ जणो पिज्जइ मज च जत्थ बहुदोसं। इच्छंति सो वि धम्मो केइ य अण्णाणिणो पुरिसा ||17|| यत्र वधो जीवानां भाष्यते यत्रालीकवचनं च । यत्र परद्रव्यहरणं सेव्यते यत्र पराङ्गना ||15|| बहारम्भपरिग्रहग्रहणं सन्तोष वर्जितं यत्र । पञ्चोदुम्बरमधुमांसानि भक्ष्यन्ते यत्र धर्मे ।।16।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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