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धर्मरसायन
काइं वि खीराइंजए हवंति दुक्खावहाणि जीवाणं। काइं वि तुढि पुद्धि करंति वरवण्णमारोग्गं ॥10॥ कान्यपि क्षीराणिजगतिभवन्ति दुःखप्रदानि जीवानाम्। कान्यपितुष्टिंपुष्टिं कुर्वन्तिवरवर्णमारोग्यम्।।10।
संसार में पाया जाने वाला, कुछ प्राणियों का दूध जीवों को दुःख प्रदान करने वाला होता है। जबकि कुछ प्राणियों का दूध सन्तुष्टि, पोषण, सुन्दर रंग तथा उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाला होता है।
धम्मा य तहा लोए अणेयभेया हवंति णायव्वा । णामेण समा सव्वे गुणेण पुण उत्तमा केई ॥11॥ धर्माश्च तथा लोके अनेकभेदा भवन्ति ज्ञातव्या । नाम्ना समा सर्वे गुणेन पुनरुत्तमाः केचित् ।।11।।
उसी प्रकार संसार में अनेक प्रकार के धर्म हैं, जो जानने योग्य हैं। यद्यपि नाम से तो वे सभी समान हैं किन्तु गुणों की दृष्टि से, उनमें से कुछ ही धर्म उत्तम है।
पावंति केइदुक्खंणारयतिरियकुमाणुस्सजोणीसु। पावंति पुणो दुक्खं केई पुणु हीणदेवत्तं ।।12।। प्राप्नुवन्ति केचिदुःखं नारकतिर्यक्मानुषयोनिषु । प्राप्नुवन्ति पुनदुःखं केचित्पुनः हीनदेवत्वे||12||
कुछ प्राणी नरक में, पशु-पक्षी की योनि में तथा कुत्सित मनुष्ययोनि में दुःख भोगते हैं और कुछ देवत्व से हीन होने पर दुःख प्राप्त करते हैं ।
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