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महावीर वाणी के तृतीयसंस्करण की
प्रस्तावना अध्यापक श्री बेचरदास जीवराज दोशीजी का पत्र, ति. १५-६-१९५३ ई. का मुझे ति: १८-६-'५३को मिला, और-नये संस्करणके छपे फ़र्मे भी मिले। द्वितीय की अपेक्षा इसमे जो परिवर्तन किया गया है, अर्थात् कुछ अंश छोड़ दिया है, कुछ बढ़ाया है, उसकी चर्चा. श्रीजमनालालजी जैनने अपने "पुनश्च" शीर्षकके निवेदनमे, किया है तथा श्रीबेचरदासजीने उक्त पत्रमे अधिक विस्तार से किया है; फलतः, प्रथम और द्वितीयमे ३४५ तथा ३४६ गाथा थीं, इसमे ३१४ हैं। 'जातिमदनिवारणसूत्र' जो बढ़ाया है वह बहुत ही अच्छा, शिक्षाप्रद, समयोचित, आवश्यक, समाजशोधक सूक्त है । यदि अन्य प्रमुख जैनाचार्योंकी उक्तियाँ, इसकी टीकाके रूपमे इसके 'परिशिष्ट ' के रूपमे, नहीं तो चौथे संस्करणमे, रख दी जाय तो और अच्छा हो; यथा रविषेण (५ वीं शती)के 'पद्मचरित'मे,
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