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"मनुष्यजातिरेकैव, जातिनामोद्भवोद्भवा, वृत्तिमेदाद् हितभेदात् चातुर्वर्ण्यमिहाऽश्नुते। ब्राह्मणाः व्रतसंस्कारात्, क्षत्रियाः शस्त्रधारणात, वणिजोऽर्थार्जनात् न्यायात् शूद्रा न्यग्वृत्तिसंश्रयात्।"
तृतीय संस्करण का एक और श्लाघ्य विशेष गुण यह है कि प्रत्येक श्लोकके नीचे, उस प्राचीन मूल ग्रंथका संकेत कर दिया है जिसमे वह मिलता है, यथा 'उत्तराध्यनसूत्र' 'दशवैकालिकसूत्र', आदि । एक और कार्य, आगामी संस्करणों मे कर्तव्य है। प्रसिद्ध है कि बुद्धदेवने 'धम्मपद'को प्रत्येक गाथा विशेष विशेष अवसर पर कही; उन अवसरों के वर्णन सहित 'धम्मपद'के कोई कोई संस्करण छपे हैं। प्रायः महावीरस्वामीने भी ऐसे अवसरों पर गाथा कही होंगी; उनको भी छापना चाहिये। यह रीति इस देश की बहुत पुरानी है; अति प्राचीन इतिहास, पुराण, रामायण, महाभारत, भागवत आदि मे, अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास्त्र, राजशास्त्र, ब्रह्मविद्याके भी, गूढ सिद्धांत, आख्यानका कथानकाँकी लपेट मे कहे गये हैं, जो उदाहरणो का काम देते हैं। इस प्रकार से, रोचकता के कारण, सिद्धांत ठीक ठीक समझ मे भी आ जाते हैं और स्मृति मे गड़ जाते हैं, कभी भूलते नहीं।
पुस्तकके अंतमें सब गाथाओँका संस्कृत रूपांतर छाप [२४]
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