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________________ मैं उन्हीं का काम कर रहा हूं महावीर वाणी मुझे बहुत ही प्रिय लगी है. संस्कृत छाया दे रहे हो उससे उसे समझने में सहूलियत होगी. आज तो में बुद्ध और महावीर की छत्र छाया में उन्हीं के प्यारे बिहार में घूम रहा हूं और मानता हूं कि उन्हीं का काम मैं कर रहा हूं. इन दिनों 'धम्मपद' की पुस्तक मेरे साथ रहती है. जब महावीर वाणी का आपका नया संस्करण निकलेगा तब वह भी रखूंगा. पढ़ने के लिए मुझे समय मिले या न मिले, कोई चिंता नहीं. ऐसी चीजें नजदीक रहीं तो उनकी संगति से भी बहुत मिल जाता है. वैसे पहेले महावीर - वाणी मैं देख चुका हूं. फिर भी प्रिय वस्तु का पुनर्दर्शन प्रियतर होगा. आजकल सैकड़ों पुस्तकों की हर भाषामें भरमार हो रहीं है. अगर मेरी चले तो बहुत से लेखकों को मैं खेती के काम में लगाना चाहूंगा और गीता, धम्मपद, महावीर वाणी जैसी चंद किताबों से समाजको उज्जीवन पहुँचाऊँगा । * 66 पड़ाव : अंबा (गया) ११-११-५२ Jain Education International -विनोबा * ऊपरकी पंक्तियां रांकाजीको लिखे गए एक पत्रसे ली गई है जो उन्होंने 'महावीर वाणी' पुस्तकके विषयमें लिखी थीं। [ २२ ] For Private & Personal Use Only --- www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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