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बाल-सुर्त
(१७८) भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मन्दिए मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ॥१॥
_[ उत्तरा० अ० ८ गा. ५ ]
(१७६) जे गिद्ध कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई । न मे दि8 परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई ॥२॥
[ उत्तरा? अ०५ गा०५]
(१८०) हत्थागया इमे कामी, कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए, अत्थिं वा नत्थि वा पुणो ॥३॥
(१८१) जरोण सद्धि होक्खामि, इइ बाले पगम्भइ । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जइ ॥४॥
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