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________________ :१६: बाल-सूत्र (१७८) जो बाल-मूर्ख मनुष्य काम-भोगों के मोहक दोषों में प्रासत हैं, हित तथा निश्रेयस के विचार से शून्य हैं, वे मन्दबुद्धि संसार में वैसे ही फंस जाते हैं, जैसे मक्खी श्लेष्म (कफ) में । (१७६) जो मनुष्य काम-भोगों में प्रासक्त होते हैं, वे पाश में फंस कर बुरे-से-बुरे पाप-कर्म कर मालते हैं। ऐसे लोगों की मान्यता होती है कि-' परलोक हमने देखा नहीं, और यह विद्यमान काम-भोगों का मानन्द तो प्रत्यक्ष-सिद्ध है। (१९०) 'वर्तमान काल के काम-भोग हाथ में है-पूर्णतया स्वाधीन हैं। भविष्यकाल में परलोक के सुखों का क्या ठिकानामिलें या न मिलें ? और यह भी कौन जानता है कि परलोक है भी या नहीं।" (१८१) "मैं तो सामान्य बोगों के साथ रहूँगा-अर्थात् जैसी उनकी दशा होगी, वैसी मेरी भी हो जायगी"-मूर्ख मनुष्य इस प्रकार धृष्टता-भरी बातें किया करते हैं और काम-भोगों की आसक्ति के कारण अन्त में महान् क्लेश पाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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