SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाद-स्थान-सूत्र (१३३) जिसे मोह नहीं उसे दुःख नहीं; जिसे तृष्णा नहीं उसे मोह नहीं; जिसे लोभ नहीं उसे तृष्णा नहीं; और जिसके पास लोभ करने योग्य कोई पदार्थ-संग्रह नहीं है, उसमें लोभ भी महीं। (१३४) दूध-दही आदि रसों का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि रस प्रायः मनुष्यों में मादकता पैदा करते है। मत्त मनुष्य की ओर काम-वासनायें वैसे ही दौड़ी आती हैं, जैसे स्वादिष्ट फजवाले वृक्ष की ओर पक्षी ।। (१३५) जो मूर्ख मनुष्य सुन्दर रूप के प्रति तीव प्रासक्ति रखता है, यह अकाल में ही नष्ट हो जाता है। रागातुर व्यक्ति रूपदर्शन की लालमा में वैसे ही मृत्यु को प्राप्त होता है, जैसे दोपक की न्योति को देखने की लालसा में पतंग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002750
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1953
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy