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महावीर वाणी
( १३६ ) नरस्स एवं,
रूवाणुरत्तस्स
कुतो सुहं होज्ज कयाइ किंचि | तत्थोवभोगे वि किलेस - दुक्खं,
निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ||७||
(१३७)
एमेव रूवम्मि गओ पसं दुक्खोहपरंपराओ ।
उवेइ पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं,
जं से पुणो होइ दुहं विवागे || 5 || (१३८)
रूवे विरत्तो मणुश्रो विसोगो, दुक्खोहपरंपरे ।
एए
न लिप्पए भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥६॥
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[ उत्तरा० अ० ३२ गा० ३२-३४ ] ( १३६ )
एविन्दियत्था य मरणस्स अत्था, दुक्खरस हे मरणग्रस्त रागिणों ।
ते चैव थोवं पि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करेन्ति किंचि ॥ १० ॥
[ उत्तरा० अ० ३२ गा० १०० ]
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