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महावीर-चागी
(१३३) दुक्खं यं जस्स न होइ मोहों,
मोहो हो जस्स न होइ तराहा । तरहा हया जस्स न होइ लोहो, लोहों हो जरस न किंचणाई॥४
[ उत्तराः श्र. ३२ गाः ६-८]
(१३४) रसो पगामं न निसेवियव्या,
पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिवन्ति, दुम जहा साउफलं व पक्वी ॥॥
[ उत्तरा० श्रा, ३२ गा० १०]
(१३५) रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्यं, ____ अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, - आलोयलोले समुवेइ मच्चु ॥६॥
[ उत्तरा० अं० ३२ गा० २४ ]
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