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प्रमाद-स्थान-सूत्र
(१३०) प्रमाद को कर्म कहा गया है और अप्रमाद को अकर्म--अर्थात जो प्रवृत्तियाँ प्रमाद-युक्त हैं वे कर्म-बन्धन करनेवाली हैं, और जो प्रवृत्तियाँ प्रमाद रहित हैं वे कर्म-बन्धन नहीं करती। प्रमाद के होने और न होने से ही मनुष्य क्रमशः मूर्ख और पंडित कहलाता है।
(१३१) जिस प्रकार बगुली अंडे से पैदा होती है और अंडा बगुली से पैदा होता है, उसी प्रकार मोह का उत्पत्ति-स्थान तृष्णा है और तृष्णा का उत्पत्ति स्थान मोह है।
(१३२) राग और तुष-दोनों कर्म के बीज हैं । अतः मोह ही कर्म का उत्पादक माना गया है। कम-सिद्धान्त के अनुभवी बोग कहते हैं कि संसार में जन्म-मरण का मूल कर्म है, और जन्ममरण यही एकमात्र है।
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