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________________ 79 भावार्थ - मर्दानी बोली के बदले जनानी बोली से उत्तर मिला ॥१४॥ अहो विधायिनः किन्न महोदय करेण ते। विकासमेति मेऽतीव पद्मिन्याः कुचकोरकः ॥१५॥ अहो महोदय, सूर्य जैसे तेजस्वी और लोकोपकार करने वाले तुम्हारे करके स्पर्श से मुझ कमलिनी का-कुछ-कोरक अतीव विकास को प्राप्त हो रहा है । भावार्थ - वैसे तो मैं बहुत सन्तप्त थी, पर अब तुम्हारे हाथ का स्पर्श होने से मेरा वक्षःस्थल शान्ति का अनुभव कर रहा है ॥१५॥ सारोमाञ्चनतस्त्वं भो मारो भवितुमर्ह सि । जगत्यस्मिन्नहं मान्या लति का तरुणायते ॥१६॥ __ हे पुरुषोत्तम, आप इस जगत् में सघन छायादार वृक्ष के समान तरुणावस्था को प्राप्त हो रहे हैं और मैं आपके द्वारा सामान्य (स्वीकार करने योग्य) नवीन लता के समान आश्रय पाने के योग्य हूं। हे महाभाग, आपके कर-स्पर्श से रोमाञ्चको प्राप्त हुई मैं रति के तुल्य हूँ। अतः आप सारभूत कामदेव होने के योग्य हैं ॥१६॥ वरं त्वत्तः करं प्राप्याप्यकमस्त्वधुना कुतः । कृतज्ञाऽहमतो भूमौ देवरजा नुरस्मि ते ॥१७॥ हे देवराज, तुम्हारे कर रुप वर को पाकर मैं भी कल को अर्थात् शान्ति को प्राप्त हो रही हूं, अब मुझे कष्ट कहां से हो सकता है ? भूमि पर इन्द्रतुल्य हे एश्वर्यशालिन् मैं इस कृपा के लिए आपकी बहुत कृतज्ञ हूँ। (ऐसा कहकर उपने सुदर्शन का हाथ पकड़ लिया) ॥१७॥ इत्येवं वचसा जातस्तमसेवावृतो विधुः । । वैवर्येनान्विततनुः किञ्चित्कालं सुदर्शनः ॥१८॥ कपिला के मुख से निकले हुए इस प्रकार के वचन सुनकर सुदर्शन कुछ काल के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया और उसका सारा शरीर विरुपता को प्राप्त हो गया, जैसे कि राहु से ग्रसित चन्द्रमा हतप्रभ हो जाता है ॥१८॥ हे सुबुद्धे न नाऽहं तु करत्राणां विनामवाक् । त्वदादेशविधिं कर्तुं कातरोऽस्मीति वस्तुतः ॥१९॥ कुछ देर में स्वस्थ होकर सुदर्शन ने कहा - हे सुबुद्धिशालिनी, मैं पुरुष नहीं हूं, किन्तु पुरुषार्थहीन (नपुंसक) हूं । सो स्त्रियों के लिए किसी भी काम का नहीं हूं। इसलिए वास्तव में तुम्हारी आज्ञा का पालन करने में असमर्थ हूं ॥१९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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