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________________ 62 -- - - - -- - -- - -- - हे नाथ मे नाथ मनोऽविकारि सुराङ्गनाभिश्च तदेव वारि । मनोरमायां तु कथं सरस्यां सुदर्शनस्येथमभूत्समस्या ॥१५॥ मुनिराज की वाणी सुनकर और अपने पिता को इस प्रकार मुनि बना देखकर सुदर्शन भी संसार से उदास होता हुआ मुनिराज से बोला - हे नाथ, हे स्वामिन्, मैं मानता हूं कि यह संसार असार है, विनश्वर है । पर देवाङ्गनाओं से भी विकार भाव को नहीं प्राप्त होने वाला मेरा यह मन रुप जल मनोरमारुपी सरसी (सरोवरी) में अवश्य ही रम रहा है, यह मेरे लिए बड़ी कठिन समस्या है, जिससे कि मैं मुनि बनने के लिए असमर्थ हो रहा हूँ। इस प्रकार सुदर्शन ने अपनी समस्या मुनिराज से प्रकट की ॥१५॥ मुनिराह निशम्येदं श्रृणु तावत्सुदर्शन। प्रायः प्राग्भवभाविन्यौ प्रीतत्यप्रीती च देहिनाम ॥१६॥ सुदर्शन की बात सुनकर मुनिराज बोले - सुदर्शन, सुनो-जीवों के परस्पर प्रीति और अप्रीति प्रायः पूर्वभव के संस्कार वाली होती है। भावार्थ - तेरा जो मनोरमा में अति अनुराग है, वह पूर्वभव के संस्कार-जनित है, जिसे मैं बतलाता हूं, सो सुन ॥१६॥ त्वमेकदा विन्ध्यगिरे निवासी भिल्लस्त्वदीयांघियुगेकंदासी। तयोरगाज्जीव नमत्यघेन निरन्तरं जन्तुबधाभिधेन ॥१७॥ पूर्वभव में तुम एक बार विन्ध्याचल के निवासी भील थे और यह मनोरमा भी उस समय तुम्हारे चरण-युगल की सेवा करने वाली गृहिणी थी। उस समय तुम दोनों ही निरन्तर जीवों का वध करकरके अपना जीवन पाप से परिपूर्ण बिता रहे थे ॥१७॥ मृत्वा ततः कुक्कुरतामुपेतः किञ्चिच्छु भोदर्क वशात्तथेतः। जिनालयस्यान्तिकमेत्य मृत्यु सुतो बभूवाथ गवां स पत्युः ॥१८॥ भील की पर्याय से मर कर तुम्हारा जीव अगले भव में कुत्ता हुआ। कुछ शुभ होनहार के निमित्त से वह कुत्ता किसी जिनालय के समीप आकर मरा और किसी गुवाले के यहां जाकर पुत्र हुआ ॥१८॥ आकर्षताब्जं च सहस्रपत्रं तेनैकदा गोपतुजैक मत्र। इदं प्रवृद्धाय समपणीयं स्वयं नभोवाक समुपालभीयम् ॥१९॥ एक बार सरोवर में से सहस्रपत्र वाले कमल को तोड़ते हुए उस गुवाले के लड़के ने यह आकाशवाणी सुनी कि वत्स, यह सहस्रदल कमल किसी बड़े पुरुष को समर्पण करना,स्वयं उपभोग न करना ॥१९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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