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सोऽस्मे त्वज्जनकायासौ राज राजा जिनाय च।। समर्पयितुमैच्छत्तत्सर्वे प्राप्ता जिनालयम् ॥२०॥
गुवाले के लड़के ने सोचा - हमारे नगर में तो वृषभदास सेठ सबसे बड़े आदमी हैं, अत: वह कमल देने के लिए उनके पास पहुँचा और आकाशवाणी की बात कहकर वह कमल उन्हें देने लगा। किन्तु सेठ ने कहा कि मेरे से भी बड़े तो इस नगर के राजा हैं, उन्हें यह देना चाहिए, ऐसा कहकर सेठ उस बालक को साथ लेकर राजा के पास पहुंचा और आकाशवाणी की बात कहकर वह कमल उन्हें भेंट करने लगा। तब राजा ने कहा कि मेरे से ही क्या, सारे त्रैलोक्य में सबसे बड़े तो जिनराज हैं, यह उन्हें ही समर्पण करना चाहिए, ऐसा कहकर वे सब (राजा उन दोनों को साथ लेकर) जिनालय पहुँचे ॥२०॥
सर्वेषामभिवृद्धाय जिनाय समहोत्सवम् । तत्र तद्दापयामासुर्गोपबालकहस्ततः
॥२१॥ वहां पहुंचकर राजा ने बड़े महोत्सव के साथ उस गोप बालक के हाथ से वह सहस्रदल कमल त्रैलोक्य में सबसे बड़े जिन देव के लिए समर्पण करवा दिया, अर्थात् जिनभगवान् के आगे चढ़वा दिया ॥२१॥
गोदोहनाम्भोभरणादिकार्य करं पुनर्गोपवरं स आर्यः । श्रेष्ठी मुहुः स्नेहतयाऽन्वरक्षीद् धर्माम्बुवाहाय न कः सपक्षी ॥२२॥
वृषभदास सेठ ने उस गुवाले के लड़के को योग्य होनहार देखकर अपनी गायों के दुहने और जल भरने आदि कार्यों के करने के लिए अपने यहां नौकर रख लिया और बहुत स्नेह से उसकी रक्षा करने लगा। सो ठीक ही है, धर्म-बुद्धिवाले जीव की कौन सहायता नहीं करता ॥२२॥
मुनि हिमतौँ द्रुममूलदेश स्थितं वनान्तादिवसात्यये सः । प्रत्यावजन् वीक्षितवानुदारमात्मोत्तमाङ्गार्पितकाष्ठ भारः ॥२३॥
एक समय शीतकाल में जबकि हिम-पात हो रहा था, वह गुवाल का लड़का अपने शिर पर लकड़ियों का भार लादे हुए वन से शाम को घर वापिस आ रहा था,तब उसने मार्ग मे एक वृक्ष के नीचे आसन मांडकर बैठे हुए ध्यानस्थ उदार साधु को देखा ॥२३॥
मत्तोऽप्यवित्तविधिरेष मयोपकार्यः किन्नेति चेतसि स भद्रतया विचार्य । निश्चेलकं तमभिवीक्ष्य बभूव यावद् रात्रं तदन उपकल्पितवह्निभावः ॥२४॥ __ वस्त्र से रहित और ध्यान में अवस्थित उन मुनिराज को देखकर भोलेपन से वह विचारने लगा .. अहो, ये तो मेरे से भी अधिक निर्धन और गई बीती दशा को प्राप्त दिख रहे हैं ? फिर मुझे इनका
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