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________________ 88889038 अथ तृतीयः सर्गः 5888888633 362988 388886220530 8686058883366 236308888888888 88888888 सुषुवे शुभलक्षणं सुतं रविमैन्द्रीव हरित्सती तु तम् । खगसत्तमचारसूचिते समये पुण्यमये खलूचिते ॥१॥ इसके पश्चात् गर्भ के नव मास व्यतीत होने पर, किसी पुण्यमयी शुभ वेला में, जबकि सभी ग्रह अपनी-अपनी उत्तम राशि पर अवस्थित थे, उस सती जिनमती सेठानी ने शुभ लक्षण वाले पुत्र को उत्पन्न किया, जैसे कि पूर्व दिशा प्रकाशवान् सूर्य को उत्पन्न करती है ॥१॥ उदरक्षणदेशसम्भुवा समये सा समपूजयत्तु वा। जगतीमुत विश्वमातरं परिमुक्ता परिचारिणीष्वरम् ॥२॥ जैसे स्वाति-बिन्दु के पान से उत्पन्न हुए मोती के द्वारा सीप शोभित होती है, उसी प्रकार उस मंगलमयी वेला में सेवा करने वाली महिलाओं के मध्य में अवस्थित उस सेठानी ने अपने उदर-प्रदेश से उत्पन्न हुए, उस बालक के द्वारा समस्त विश्व की आधार भूत इस पृथ्वी को अलंकृत किया ॥२॥ शशिना सुविकासिना निशा शिशुनोत्सङ्गगतेन सा विशाम् । अधिपस्य बभौ तनूदरी विलसद्धंसवयाः सरोवरी ॥३॥ जैसे विकास को प्राप्त पूर्ण चन्द्र के द्वारा रात्रि और विलास करते हुए हंस के द्वारा सरोवरी शोभित होती है, उसी प्रकार अपनी गोद में आये हुए उस कान्तिमान् पुत्र के द्वारा वह वैश्य सम्राट् वृषभदास की सेठानी सुशोभित हुई ॥३॥ सुतजन्म निशम्य भृत्यतः मुमुदे जानुजसत्तमस्ततः । परिपालितताम्रचूड वाग् रविणा कोकजनः प्रगे स वा ॥४॥ तदनन्तर नौकर के मुख से पुत्र का जन्म सुनकर वह वैश्य-श्रेष्ठ वृषभदास अति प्रमोद को प्राप्त हुआ। जैसे कि प्रभात काल में ताम्रचूड (मुर्गा) की बांग सुनकर सूर्य का उदय जान चातक पक्षी प्रमुदित होता है ॥४॥ प्रमदाश्रुभिराप्लुतोऽभितः जिनपं चाभिषिषेच भक्तितः। प्रभुभक्तिरुताङ्गिनां भवेत्फलदा कल्पलतेव यद्भवे ॥५॥ हर्ष के आंसुओं से नहाये हुए सेठ वृषभदास ने भक्ति-पूर्वक जिनगृह जाकर जिनेन्द्र देव का अभिषेक किया। क्योंकि इस संसार में प्रभु की भक्ति ही प्राणियों को कल्पलता के समान मनोवाञ्छित फलदायिनी है ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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