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पर सज्जनों का समुदाय निवास करता है, अतः यह स्वर्ग और पाताल लोक से श्रेष्ठ नगर है, ऐसा मेरा विश्वास है ||३७||
धात्रीवाहननामा राजाऽभूदिह नास्य समोऽवनिभाजाम् । यथांशुमाली निजप्रजायाः यः प्रतिपाली || ३८ ॥
तेजस्वीद्द
इस नगर में एक धात्रीवाहन नाम का राजा हुआ, जिसकी समता करने वाला इस भूमण्डल पर दूसरा कोई अन्य राजा नहीं था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था और अपनी प्रजा का न्याय-नीति- पूर्वक प्रतिपालन करता था ||३८||
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यतिरिवासकौ समरसङ्गतः सुधारसहितः स्वर्गिवन्मतः । पृथुदानवारिरिन्द्र समान
एवं
नानामहिमविधान:
॥३९॥
वह राजा यति के समान 'समरसङ्गत' था। जैसे साधु समता रस को प्राप्त होते हैं, वैसे ही वह राजा भी समर (युद्ध) सङ्गत था, अर्थात् युद्ध करने में अति कुशल था। स्वर्ग रहने वाले देवों केसमान वह राजा ‘साधु-रस-हित था। जैसे देव सदा सुधा (अमृत) रस के ही पान करने के इच्छुक रहते हैं, वैसे ही यह राजा भी सुधार सहित था, अर्थात् अपनी प्रजा की बुराइयों को दूर कर उन्हें सुखी बनाने वाला था. इन्द्र जैसे पृथुदानवारि है, पृथु (महा) दानवों का अरि है, उनका विनाशक है, उसी प्रकार यह राजा भी 'पृथु - दान - वारि' था, अर्थात् अपनी प्रजा को निरन्तर सर्व प्रकार के महान् दानों की वर्षा के जल से तृप्त करता रहता था. इस प्रकार वह धात्रीवाहन राजा नाना प्रकार की महिमा का धारण करने वाला था ॥३९॥
अभयमतीत्यभिधाऽभूद्भार्या ययाऽभिविदितो नरपो नार्या । अपराजितये वेन्दुशेखरः स्मरस्येव यत्कटाक्षः शर: ॥४०॥
उस धात्रीवाहन राजा के अभयमती नाम की रानी थी, जिसने नारी सुलभ अपने विशिष्ट गुणों से राजा को अपने वश में कर रखा था, जैसे कि पार्वती ने महादेव को। उस रानी के कटाक्ष कामदेव के बाण के समान तीक्ष्ण थे ॥ ४० ॥
रतिरिव रुपवती या जाता जगन्मोहिनीव काममाता । चन्द्रकलेव च नित्यनूतनाऽऽनन्दवती नृपशुचः पूतना ॥४१॥
वह रानी रति के समान अत्यन्त रुपवती थी और कामदेव की माता लक्ष्मी के समान जगत को मोहित करने वाली थी। चन्द्रमा की नित्य बढ़ने वाली कला के समान वह लोगों को नित्य नवीन आह्लाद उत्पन्न करती थी और राजा के शोक सन्ताप को नष्ट करने के लिए पूतना राक्षसी-सी थी ॥ ४१ ॥
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