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ॐ 30
सुदर्शनोदयः
वीरप्रभुः स्वीयसुबुद्धिनावा भवाब्धितीरं गमितप्रजावान् । सुधीवराराध्यगुणान्वया वाग्यस्यास्ति नः शास्ति कवित्वगावा ॥
जिस वीर प्रभु की गुणशालिनी वाणी की आराधना - उपासना सुधीवर उत्तम बुद्धिवाले उच्च कुलीन विद्वज्जनों ने और मन्दबुद्धि वाले मृगसेन धीवर जैसे नीच कुलीन लोगों ने की है, तथा जिस वाणी की हम सरीखे अल्प-ज्ञानियों के ऊपर भी कवित्व शक्ति प्राप्त करने के रुप में कृपा हो रही है, ऐसे श्रीवीर प्रभु अपनी सुबुद्धि रुप नाव के द्वारा संसार के समस्त प्राणियों को भवसागर से पार उतारने वाले होवें ॥१॥
वागुत्तमा कर्मकलङ्क जेतुर्दुरन्तदुःखाम्बुनिधौ तु सेतुः । ममास्त्व मुष्मिंस्तरणाय हेतुरद्दष्ट पारे कविताभरे तु ॥२॥
कर्म - कलङ्क को जीतने वाले श्रीजिन भगवान् की जो दिव्य वाणी इस दुरन्त दुःखों से भरे भवसागर में सेतु (पुल) के समान है, वही भगवद्-वाणी इस अपार काव्य - सागर से पार उतरने के लिए मुझे भी सहायक हो ॥२॥
भवान्धुसम्पातिजनैक बन्धुर्गुरुश्चिदानन्दसमाधिसिन्धुः गतिर्ममै तस्मरणैक हस्तावलम्बिनः
काव्यपथे प्रशस्ता
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जो गुरुदेव भव- कूप में पड़े जनों के उद्धार करने के लिए एक मात्र बन्धु हैं और चिदानन्दसमाधि के सिन्धु हैं, उनके गुणा-स्मरण का ही एकमात्र जिसके हस्तावलम्बन है, ऐसे मेरे इस काव्यपथ में उनके प्रसाद से प्रशस्त गति हो ||३||
सुदर्शनाख्यान्तिमकामदेव कथा पथायातरथा मुदे वः ।
भो भो जना वीरविभोर्गुणौघानसोऽनुकूलं स्मरताममोघा ॥४॥ हे पाठकों, सुदर्शन नाम के अन्तिम कामदेव की कथा आप लोगों के लिए रोचक एवं प्रमोद
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