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22 वह वेश्या और वह पंडिता दासी दोनों घर-बार छोड़कर और अपने पापों का प्रायश्चित करके आर्यिका बन जाती हैं। इस प्रकार सुदर्शनोदयकार का यह उक्त वर्णन पूर्व परम्परा का परिहार न कह कर उन पतितों के उद्धार का ही कार्य कहा जाना चाहिए। ग्रन्थकार को सुदर्शन मुनिराज के द्वारा उपदेश दिलाने का यही समुचित अवसर प्रतीत हुआ, क्योंकि उनके अन्त:कृत्केवली होने की दृष्टि से उन्हें उनके द्वारा आगे उपदेश देने का और कोई अवसर द्दष्टिगोचर नहीं हो रहा था ।
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