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अन्त में विद्वत्समाज से हमारा निवेदन है कि मुनिश्री ने जिस अनवरत श्रम से जीवन की अनेक अमूल्य घड़ियों में एकाग्र होकर यह अनुपम साधना जिस उद्देश्य से की है, उसे कार्य रुप में परिणत करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रस्तुत ग्रन्थ को जैन परीक्षालयों एवं संस्कृत विश्वविद्यालयों के पठनक्रम में निर्वाचित कराकर, पठनपाठन में स्थान देकर और मुनिश्री की भावना को कार्यरुप में परिणत कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करें।
ब्यावर
हीरालाल शास्त्री
२५.११.६५
POOMA 0000000
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