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बन्दे तमेव सततं विलसत्तमाल
हारबन्ध काव्य
लब्ध्वा हिमङ्कमकनाशक एषकश्च
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चक्रे भुवः स वशिनां पणमाप मे सः ॥ सर्ग ९,९०॥
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रङ्गं शरीरगतरङ्गधरं चकार ।
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उपर्युक्त श्रलोकों को इस हार के आकार में पढ़े ।
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