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कलशबन्ध काव्य
नवेन सनयं लप ।
सन्नर मङ्गं मां नयेदिति न मे मतिः ॥ सर्ग ९, ८९ ॥
परमागमलम्बेन
यन्न
न
स
न
न
य
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ति
प
ल
मा
외
म
ग
तिः
म
उपर्युक्त श्लोक को कलश के आकार में पढ़ें।
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