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________________ 99 . -------------- इत्यादिकामोदयकृन्नयगादि कृत्वा तथाऽऽलिङ्गनचुम्बनादि ।। मनाङ् न चित्तेऽस्यपुनर्विकारस्ततस्तयाऽकार्यसकौ विचारः ॥१५॥ इत्यादि प्रकार से काम-भाव को जागृत करने वाली अनेक बातें उस दासी ने कही और उनका आलिंगन-चुम्बनादिक भी किया । किन्तु उस सुदर्शन के चित्त में जरासा भी विकार भाव उदित नहीं हुआ । तब हारकर अन्त में उसने उन्हें राज-भवन में ले जाने का विचार किया ॥१५॥ श्मशानतो नग्नतया लसन्तं ध्यानैकतानेन तथा वसन्तम् । सोपाहरत्तं शयने तु राझ्या यथा तदीया परिवारिताऽऽज्ञा ॥१६॥ ध्यान में एकाग्रता से निमग्न, नग्नरूप से अवस्थित उस सुदर्शन को अपनी पीठ पर लादकर वह दासी स्मशान से उन्हें उठा लाई और जैसी कि रानी की आज्ञा थी, उसने तदनुसार सुदर्शन को रानी के पलंग पर लाकर लिटा दिया ॥१६॥ सुदर्शनं समालोक्यैवाऽऽसीत्सा हर्षमेदुरा । महिषी नरपालस्य चातकीवोदिताम्बुदम् ॥१७॥ जैसे चिरकाल से प्यासी चातकी आकाश में प्रकट हुए नव सजल मेघ को देखकर अत्यन्त आनन्दित होती है, उसी प्रकार वह नरपाल की पट्टरानी अभयमती भी सुदर्शन को आया हुआ देखकर अत्यन्त हर्षित हुई ॥१७॥ चन्द्रप्रभ विस्मरामि न त्वाम् ॥ स्थायी। कौमुदमपि यामि तु ते कृपया कान्तां रजनीं गत्वा ॥१॥ पूर्णाऽऽशास्तु किलाऽपरिघूर्णाऽस्माकमहो तव सत्त्वात् ॥२॥ सदा सुदर्शन, दर्शनन्तु ते सम्भवतान्मम सत्त्वात् ॥३॥ क्षणभूरास्तां न स्वप्रेऽप्युत यत्र न यानि वत त्वाम् ॥४॥ चन्द्रमा जैसी कान्ति के धारक हे सुदर्शन, मैं आपकोकभी नहीं भूलती हूं, क्योंकि आपकी कृपा से ही मैं इस सुहावनी रात्रि को प्राप्त कर संसार में अपूर्व आनन्द को पाती हूं । आप के प्रभाव से ही मुझे कुमुद (रात्रि में खिलने वाले कमल) प्राप्त होते है । आपके ही प्रसाद से मेरी चिर- अभिलषित आशाएं परिपूर्ण होती हैं । अतएव हे सुदर्शन, आपके सुन्दर दर्शन मुझे सदा होते रहें । मेरा एक क्षण भी स्वप्न में भी ऐसा न जावे, जब कि मैं आपको न देखू ॥१-४॥ सुमनो मनसि भवानिति धरतु ॥स्थायी॥ समुदारहृदां कः परलोकः कश्चिदपि न भवतीत्युच्चारतु ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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