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___ 93 । रहते हैं । किन्तु मिट्टी का बना पुतला बताकर और द्वार पर स्थित जनों को ठगकर सुदर्शन के अपहरण से मैं इस कार्य को सिद्ध कर सकती हूं। इसलिए अब मुझे अपने कर्त्तव्य मार्ग में ही लग जाना चाहिए। अष्टमी-चतुर्दशी पर्व के दिन सुदर्शन सेठ नग्न होकर श्मसान भूमि में प्रतिमा योग धारण कर आत्मध्यान में निमग्न रहते हैं, वहां से मैं उन्हें सहज में ही शीघ्र ले आऊंगी। ऐसा विचार कर वह पण्डिता दासी अपने कर्तव्य को सिद्ध करने के लिए उद्यत हो गई ॥१-४॥
श्रीमान् श्रेष्टि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च य धीचयम् । तेन प्रोक्त सुदर्शनस्य चरितेऽसौ श्रीमतां सम्मतः । राज्ञीचेतसि मन्मथप्रकथकः षष्टोऽपि सर्गों गतः ॥
इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए, वाणीभुषण, बालब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर-विरचित-इस सुदर्शनोदय काव्य में रानी अभयमती के चित्त में कामविकार जनित दशा का वर्णन करने वाला छठा सर्ग समाप्त हुआ ।
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