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15,17 नवम्बर 2006 | जिनवाणी, 90.
प्रतिक्रमण की उपादेयता
श्री अरुण मेहता
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प्रतिक्रमण के आशय, उसकी आवश्यकता, उसके काल एवं उपादेयता पर शासन सेवा समिति के सदस्य श्री अरूण जी मेहता ने प्रस्तुत आलेख में सम्यक् प्रकाश डाला है। -सम्पादक
जैन धर्म एवं दर्शन का प्रमुख आधार आगम है। आगम बत्तीसी में बत्तीसवाँ सूत्र ‘आवश्यक सूत्र' है। आवश्यक सूत्र में छह आवश्यक हैं, इनमें चौथा आवश्यक प्रतिक्रमण इस आगम का प्रमुख भाग है। . 'प्रतिक्रमण' शब्द का आशय- 'प्रति+क्रमण' इन दोनों शब्दों के योग से प्रतिक्रमण शब्द बना है। प्रति का अर्थ है- पीछे की ओर, क्रमण का अर्थ है- चलना अथवा गति करना। अर्थात् जो अतिक्रमण यानी सीमा का उल्लंघन हुआ है वहाँ से वापस अपनी सीमा में आना प्रतिक्रमण है। 8 व्रत नियमों की मर्यादा का जो उल्लंघन हुआ है, उस उल्लंघन से मर्यादा में वापस आना प्रतिक्रमण है। 3 अशुभ योगों में गये हुए आत्मा का वापस शुभयोगों में आना प्रतिक्रमण है। & प्रमाद के कारण विभाव में गई हुई आत्मा का वापस स्वभाव में आना प्रतिक्रमण है। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग से आत्मा को हटाकर सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र में लगाना प्रतिक्रमण है। किये हुए पापों की आलोचना-पश्चात्ताप कर उन्हें फिर न दोहराने का संकल्प करना प्रतिक्रमण है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रतिक्रमण एक प्रकार का आत्म-स्नान है, जिससे आत्मा कर्म रहित होकर हल्की व शुद्ध बनती है। प्रतिक्रमण की आवश्यकता- जिस प्रकार यदि हमारे पैर में काँटा चुभ जाये अथवा आँखों में तिनका चला जाये तो हमारी गति एवं नजर में व्यवधान आ जाता है, जिससे आगे गति करना संभव नहीं होता है। ठीक इसी प्रकार साधक के लिये भी गृहीत व्रत-नियमों में यदि कोई अतिचार-दोष लगा हो तो उसका शोधन करना आवश्यक है। इससे चारित्र मार्ग में निरन्तर प्रगति होती है। व्रत-नियमों के अतिचारों का शोधन करने का अमोघ उपाय प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण के भेद- प्रतिक्रमण के प्रमुख दो भेद हैं- द्रव्य प्रतिक्रमण और भाव प्रतिक्रमण। (अ) द्रव्य प्रतिक्रमण- अंतरंग उपयोग रहित, दोष शुद्धि का विचार किये बिना, पुण्य फल की कामना से केवल परम्परा रूप से प्रतिक्रमण करना द्रव्य प्रतिक्रमण है। दोषों या पापों की शुद्धि के लिए शब्द रूप प्रतिक्रमण करना अथवा बिना उपयोग के पाठों का उच्चारण करना भी द्रव्य प्रतिक्रमण है।
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