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________________ 390 जिनवाणी 15,17 नवम्बर 2000 तैतीस आशातनाएँ (आवश्यकसूत्र में अरिहन्त आदि से सम्बद्ध ३३ आशातनाएँ अलग हैं) १. मार्ग में रत्नाधिक (दीक्षा में बड़े) से आगे चलना। २. मार्ग में रत्नाधिक के बराबर चलना। ३. मार्ग में रत्नाधिक के पीछे अड़कर चलना। ४-६. रत्नाधिक के आगे, बराबर में तथा पीछे अड़कर खड़े होना। ७-९. रत्नाधिक के आगे, बराबर में तथा पीछे अड़कर बैठना। १०. रत्नाधिक और शिष्य विचार-भूमि (जंगल में) गए हों वहाँ रत्नाधिक से पूर्व आचमन-शौच शुद्धि करना। ११. बाहर से उपाश्रय में लौटने पर रत्नाधिक से पहले ईर्यापथ की आलोचना करना। १२. रात्रि में रत्नाधिक की ओर से 'कौन जागता है?' पूछने पर जागते हुए भी उत्तर न देना। १३. जिस व्यक्ति से रत्नाधिक को पहले बातचीत करनी चाहिए, उससे पहले स्वयं ही बातचीत करना। १४. आहार आदि की आलोचना प्रथम दूसरे साधुओं के आगे करने के बाद रत्नाधिक के आगे करना। १५. आहार आदि प्रथम दूसरे साधुओं को दिखला कर बाद में रत्नाधिक को दिखलाना। १६. आहार आदि के लिए प्रथम दूसरे साधुओं को निमंत्रित कर बाद में रत्नाधिक को निमंत्रण देना। १७. रत्नाधिक को बिना पूछे दूसरे साधु को उसकी इच्छानुसार प्रचुर आहार देना। १८. रत्नाधिक के साथ आहार करते समय सुस्वादु आहार स्वयं खा लेना अथवा साधारण आहार भी शीघ्रता से अधिक खा लेना। १९. रत्नाधिक के बुलाये जाने पर सुना-अनसुना कर देना। २०. रत्नाधिक के प्रति या उनके समक्ष कठोर अथवा मर्यादा से अधिक बोलना। २१. रत्नाधिक के द्वारा बुलाये जाने पर शिष्य को उत्तर में मत्थएण वंदामि' कहना चाहिए। ऐसा न कहकर 'क्या कहते हो' इन अभद्र शब्दों में उत्तर देना। २२. रत्नाधिक के द्वारा बुलाने पर शिष्य को उनके समीप आकर बात सुननी चाहिए। ऐसा न करके आसन पर बैठे ही बैठे बात सुनना और उत्तर देना। २३. गुरुदेव के प्रति 'तू' का प्रयोग करना। २४. गुरुदेव किसी कार्य के लिए आज्ञा देवें तो उसे स्वीकार न करके उल्टा उन्हीं से कहना कि 'आप ही कर । लो।' २५. गुरुदेव के धर्मकथा कहने पर ध्यान से न सुनना और अन्यमनस्क रहना, प्रवचन की प्रशंसा न करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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