________________
15.17 नवम्बर 2006
|384 - जिनवाणी
||15,17 नवम्बर 2006|| ११३. दूरमोगाढे- जहाँ कम से कम ४ अंगुल नीचे की भूमि अचित हो। ११४. णासन्ने- जहाँ ग्राम बगीचादि नजदीक न हो। ११५. बिलवज्जीए- जहाँ चूहे आदि का बिल नजदीक न हो। ११६. तसपाणावयरहिय- जहाँ बेइन्द्रिय त्रस जीव और शाल्यादि बीज न हो, वहाँ परटें। मनोगुप्ति के ३ अतिचार ११७. संरम्भ ११८. समारम्भ ११९. आरम्भ वचनगुप्ति के ३ अतिचार १२०. संरम्भ १२१. समारम्भ .१२२. आरम्भ कायगुप्ति के ३ अतिचार १२३. संरम्भ १२४. समारम्भ
१२५. आरम्भ
ज्ञान के १४ दर्शन के ५ व्रत के ६० कर्मादान १५ संलेखना ५
श्रावक प्रतिक्रमण में 99 अतिचार (श्रमण अतिचारानुसार) (श्रमण अतिचारानुसार) (नीचे दिए गए हैं) (नीचे दिए गए हैं) (श्रमण अतिचारानुसार)
व्रत के ६० अतिचार १. बंधे- गाढ़े बंधन से बाँधा हो। २. वहे- वध (मारा या गाढ़ा घाव घाला हो)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org