________________
||15,17 नवम्बर 2006||
जिनवाणी
255 शिथिलीकरण, शवासन आदि करवाते हैं, जिससे मानसिक तनाव के साथ-साथ शारीरिक तनाव भी दूर होते हैं और रोगी अनेक रोगों से मुक्त हो जाता है। इतना ही नहीं, कायोत्सर्ग से एक नवचेतना, नवस्फूर्ति मन में जाग उठती है।
कायोत्सर्ग की अवस्था में शरीर स्थिर एवं मन निस्पंद होने से पूर्वोपार्जित दोष जो कि अचेतन में सुप्त-रूप में संचित रहता है, वह अवसर प्राप्त करके सचेतन मन में उभर उठता है। जिससे दोषी को अपना दोष स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होता है। तब वह साधक अपने दोष को दोष जानकर उससे अपनी आत्मिक क्षति पहचान कर दोषों का त्याग करता है। कुछ देशों में अपराधी जब अपराध लेकर न्यायाधीश के पास जाता है तब न्यायाधीश उसको शांत चित्त से बैठने के लिए कहता है। वह जब कुछ समय स्थिर होकर बैठता है तब उसका तनाव, ईर्ष्या-द्वेष कम होने से अपनी भूल को स्वीकार कर लेता है। इस तरह कुछ अपराधी बिना प्रतिवाद किए ही समाधान पाकर वापस भी चले जाते हैं।
मनुष्य आवेश और तनाव की स्थिति में गलत सोच लेता है। उस स्थिति में वह कभी भी सही निर्णय नहीं ले पाता है। यदि यह बात पूर्णतः समझ ली जाती है तो वकीलों और जजों की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। तनाव के कारण ही व्यक्ति न्यायालय की शरण में जाता है। वहाँ जाने वाला भी पछताता है और नहीं जाने वाला भी पछताता है। वह बूर का लड्डू है। उसे न खाने वाला भी ललचाता है और खाने वाला भी पछताता है। यदि आवेश की स्थिति समाप्त हो जाए तो न्यायालय में चलने वाले ७० प्रतिशत मुकदमे वैसे ही समाप्त हो जाते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं
“मैंने सुना है कि पश्चिम जर्मनी में एक प्रयोग किया जा रहा है। जो व्यक्ति क्रिमिनल केस लेकर आता है, उसे ५-६ घंटे बिठाया जाता है। फिर उससे पूछताछ की जाती है। निष्कर्ष के रूप में उन्होंने बताया कि ७० प्रतिशत व्यक्ति तो बिना शिकायत किए ही लौट जाते हैं, क्योंकि वे आवेश के वशीभूत होकर न्यायालय में आए थे। आवेश मिटा और वे शांत हो गए। (कैसे सोचें? -आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. २१) (६) तप (कायेन्द्रिय दमन) प्रायश्चित्त- उपवास, आचाम्ल, निर्विकृति, दिवस के पूर्वार्द्ध में एकाशन आदि तप के रूप में प्रायश्चित्त दिये जाते हैं। यहाँ द्विसंयोगी भंगों की योजना कर लेनी चाहिए। शंका- यह प्रायश्चित्त किसे दिया जाता है? समाधान- जिसकी इन्द्रियाँ तीव्र हैं, जो जवान है, बलवान् है और सशक्त है, ऐसे अपराधी साधु को दिया जाता है। (७) संयमकाल ह्रास (छेद) प्रायश्चित्त- एक दिन, एक पक्ष, एक मास, एक ऋतु, एक अयन और एक वर्ष आदि की दीक्षा पर्याय का छेद कर इच्छित पर्याय से नीचे की भूमिका में स्थापित करना छेद नाम का प्रायश्चित्त है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org