SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 236 जिनवाणी [15,17 नवम्बर 2006|| देखा, एक मुन्ना कौने में उदास खड़ा था। मैंने बच्चे से पूछ लिया- क्या नाम है? बच्चा बोला नहीं। इतने में मेरी आवाज को सुनकर बच्चे की मम्मी आ गई। वह कहने लगी- गुरुदेव! मुन्ने का आज मूड ऑफ है। मैंने विचार किया कि- “मुन्ने के अभी दूध के दाँत भी नहीं सूखे फिर उसका मूड ऑफ होना क्या अर्थ रखता है?" यानी घर-परिवार में कषाय रंजित वातावरण होगा तो छोटे या बड़े का कब मूड ऑफ हो जाय, पता नहीं। क्षमा के संस्कार न होने के कारण छोटी-छोटी बातों में आदमी उलझ जाता है, धैर्य खो बैठता है, संबंधों में दरार आ जाती है, एक-दूसरे के प्रति कटुता का भाव बढ़ जाता है और कठोर-कर्कश भाषा में एक-दूसरे पर बौछार कर बैठते हैं। एक बार किसी एक बच्चे ने पापाजी से पूछा- पापाजी युद्ध शब्द का क्या अर्थ है ? पापाजी बच्चे को 'युद्ध' शब्द का अर्थ समझा रहे थे, इतने में बच्चे की मम्मी आ गई। मम्मी ने कहा- इसमें क्या यह तो मैं ही बता दूँ। बच्चे का पापा बोला- तूं क्या ज्यादा जानती है? पत्नी बोली- क्या आप ही सारा जानते हैं? एक-दूसरा, एक-दूसरे को कहने लगा। दोनों का विवाद देखकर बच्चा बोला- मुझे युद्ध शब्द का अर्थ समझ में आ गया। वहाँ कोई बँटवारा नहीं था, लेन-देन भी नहीं था। हाँ जमीन-जायदाद के बँटवारे में फिर भी कहा-सुनी हो सकती है, कोर्ट कचहरी तक पहुँच सकते हैं, लेकिन पति-पत्नी एक शब्द में उलझ जाय, हद हो गई अर्थात् इस कदर सहनशीलता घटती जा रही है। कभी-कभी संत-भगवंत प्रेरणा देते हैं- आपस में राग-द्वेष नहीं रखना। अगर कभी किसी से कहा-सुनी या मनमुटाव हो जाय तो खमतखामणा कर लें। मगर ध्यान रखें- खमतखामणा इस तरह हो कि समरसता बढ़े, मधुरता बढ़े, मैत्री और अपनत्व में वृद्धि हो। इस तरह क्षमायाचना न हो कि गये तो खमतखामणा करने और ज्यादा उलझ पड़े। एक बार एक संत की प्रेरणा पाकर एक भाई खमतखामणा करने गया और अगले से कहने लगा- भाई! महाराज साहब की प्रेरणा से तेरे से खमतखामणा करने आया हूँ वरना तूने मेरे साथ क्या-क्या किया मेरा जीव जानता है। यह सुनकर अगला कहने लगा- रहने दे, रहने दे मैं भी जानता हूँ तूने मेरे साथ क्या-क्या किया। देखा, आपने गया तो था क्षमायाचना के लिए मगर पुनः उलझ पड़ा। __खमतखामणा कार्ड से नहीं, हार्ट से होना चाहिये- “लड़ाई तो हो भाई से और खमतखामणा ब्याही से।" तो यह कैसा खमतखामणा? झगड़ा भाई-भाई में हो सकता है। सगे-संबंधियों में कहा-सुनी हो सकती है। अड़ौसी-पड़ौसी से मन-मुटाव हो सकता है। कभी कोई बोलने में ऊँचा-नीचा कह दे तो आदमी का पारा चढ़ सकता है। मगर गाँठ बाँधकर नहीं रखें, लेकिन देखा जाता है कि गाँठ इस तरह बाँध कर रखते हैं कि आपस में आना-जाना बंद, बोलचाल बंद, सब तरह के आपसी व्यवहार भी बंद कर देते हैं। भगवान् ने हम साधुओं को उपदेश दिया- तुम्हें अनुभव हो जाय कि तुम्हारे व्यवहार से सामने वाले का दिल दुःखा है तो तत्काल क्षमायाचना कर लें। जब तक क्षमायाचना नहीं कर लें, गोचरी के लिए नहीं जायें, तब तक स्वाध्याय भी नहीं करें, लेकिन पहले जिसका दिल दुःखाया है उससे जाकर क्षमायाचना करें। किसी के घर में कभी आग लग जाय तो आदमी क्या करता है? क्या वह पहले खाना खाता है? नहीं, वह सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy