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________________ 182 तथा उसने भोगोपभोग की मर्यादा कर रखी थी। पन्द्रह कर्मादान का खुलासा श्रावक के सातवें व्रत में जो १५ कर्मादान बताये हैं, वे प्रगाढ कर्म-बंधन के हेतु बनते हैं। इनमें ७ प्रकार के कर्म (कम्मे वाले शिल्प व ८ प्रकार के व्यापार-धंधे सम्मिलित हैं। आज के युग में यंत्रीकरण व विशालता का आयाम इनमें जुड़ जाने से, एक ही धंधे में एक से ज्यादा कर्मादान का समावेश हो सकता है। १. निम्नलिखित धंधे व शिल्प सामान्यतः कर्मादान की श्रेणी में आते हैं जिनवाणी - इंगालकम्मे (अंगार कर्म ) - इनमें अग्निकाय व त्रसकाय का महारम्भ होता है, यथा- ढलाई (फाउण्ड्री), लोहार खाना (फोर्ज) व मशीन शॉप । यहाँ बिजली व भट्टियों का खूब उपयोग होता है। यह प्रायः हर उद्योग व मेन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री का आधारभूत कर्म है । कोयला बनाने के उद्योग के अलावा, विद्युत् उत्पादन (पन बिजली, अणु विद्युत्) आदि के कर्म प्रत्यक्षतः इसी के अंदर आते हैं। कुछ धंधे परोक्ष रूप से इंगालकम्मे से जुडे हैं, जिनमें कोयला या बिजली का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग होता है, यथा- इस्पात, सीमेंट व रिफायनरी उद्योग | साडी कम् वाहन (गाड़ी, मोटर व उसके कल- -पुर्जे) बनाने वाले उद्योगों में काम करने वालों को अंगार कर्म के अलावा शकट (साडी) कर्म भी लगता है। वायुयान, रेल इंजन, बस, ट्रक, कार, स्कूटर आदि वाहन प्रत्यक्षतः साडी कम्मे में आते हैं। इन वाहनों के कलपुर्जे परोक्षतः साडीकम्मे से ही संबंधित हैं। जंतपीलण कर्म- खाद्यतेल उद्योग, कपास के उद्योग एवं गन्ना-रस के उद्योग में काम करने वालों को आधुनिक युग में अंगार कर्म (बिजली आदि का उपयोग) के अलावा यह जंतपीलण कर्म भी लगता है। फोडी कम्मे - दालें बनाने व पीसने वाले उद्योग तथा खेती व खनन उद्योग का काम करने वाले फोडी कर्म के अलावा अंगार कर्म के भी भागी बन सकते हैं। 15, 17 नवम्बर 2006 उपर्युक्त सभी उद्योग व शिल्प में अंगार कर्म की मात्रा कम-ज्यादा हो सकती है । जैसे ढलाई, लोहार खाना व बिजली उत्पादन में काम करने वाले सीधे अंगार कर्म का कर्मादान करते हैं। लेकिन अन्य तीनों में ज्यादातर बिजली से चलने वाली मशीनों का ही अंगार-कर्म लगता है। Jain Education International - २. निम्नोक्त धंधों (कर्म) के करने में प्रायः एक ही कर्मादान का योग रहता है - वणकम्मे - वृक्ष, फल-फूल, पत्ते काटकर व्यापार करने तथा वनस्पति आधारित कर्म करने में वणकम्मे दोष लगता है । भाडी कर्म - वाहन व मकान आदि भाड़े में देना व उनका फायनेन्स करना आदि व्यापार-कार्यों में भाडी कर्म का दोष लगता है। निल्लंछण कम्मे - जानवरों के अंगोपांगों का छेदन-भेदन करना। यह कर्म साधारणतया जैन श्रावक नहीं करता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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