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________________ ||15,17 नवम्बर 2006|| जिनवाणी वहाँ एक तीसरा व्यक्ति खड़ा था। उसे किसी तरह का आदेश देने का अधिकार नहीं था, उसकी आज्ञा चल भी नहीं सकती थी, फिर भी खड़ा-खड़ा अति उमंगवश कहता है कि "क्या देखता है? लगा न इसको फाँसी? क्यों देर करता है? इसे तो फाँसी पर लटकाना ही अच्छा है।" । अब उक्त तीनों व्यक्तियों में से अधिक पाप किसको हुआ? राजा और फाँसी लगाने वाला फाँसी का काम करने-कराने पर भी उस फाँसी के काम की सराहना नहीं करते हैं, लेकिन वह तीसरा व्यक्ति मुफ्त ही फाँसी लगाने के काम की सराहना करके अनावश्यक आज्ञा देकर महापाप कर रहा है। फाँसी लगाने के स्थान पर और भी दर्शक लोग थे। उनमें से जो विवेकी थे वे तो सोचते थे कि यह बेचारा पाप के कारण ही फाँसी पर चढ़ रहा है। यदि इसने अपराध न किया होता तो क्यों फाँसी लगती? इसलिये हमें भी पाप से बचना चाहिये। जो दर्शक अविवेकी थे, वे कह रहे थे कि अच्छा हुआ जो इसे फाँसी लगी। यह बड़ा ही दुष्ट था, पर चतुर नहीं था। हम कैसे चतुर हैं कि अपराध भी कर लेते हैं और राज्य या अन्य किसी की पकड़ में भी नहीं आते हैं। उक्त दोनों प्रकार के दर्शकों में से महापापी कौन और अल्पपापी कौन? स्पष्ट है कि अविवेकी दर्शकों ने महापाप का बँध किया है। इससे यह नतीजा नहीं निकालना चाहिये कि कराने से ही महापाप होता है, करने अथवा अनुमोदन से नहीं या करने से ही महापाप होता है, कराने या अनुमोदन से नहीं। निष्कर्ष यह निकलता है कि जहाँ अविवेक है वहाँ महापाप है और जहाँ विवेक है वहाँ अल्प पाप है। एक उदाहरण द्वारा यह बात और स्पष्ट हो जाती है। एक डॉक्टर ऑपरेशन करने में कुशल है लेकिन यह कहता है कि मुझे घृणा आती है इसलिये मैं तो ऑपरेशन नहीं करता अथवा प्रमादवश वह कम्पाउन्डर को ऑपरेशन करने के लिये कहता है। कम्पाउन्डर अनाड़ी है, अकुशल है। ऐसी हालत में वह डॉक्टर स्वयं ऑपरेशन न कर कम्पाउन्डर से करावे तो उस डॉक्टर को कराने में ही महापाप लगेगा। एक-दूसरा जो स्वयं ऑपरेशन करना नहीं जानता या कम जानता है वह किसी दूसरे कुशल डॉक्टर से ऑपरेशन करने को कहता है तो उसको कराने में भी अल्प पाप होगा। ऑपरेशन तो दोनों ने दूसरों से कराया, दोनों ने स्वयं नहीं किया, किन्तु पहले डॉक्टर को महापाप लगेगा और दूसरे को अल्प लगेगा। इसी तरह कोई तीसरा व्यक्ति स्वयं ऑपरेशन करना नहीं जानता है लेकिन जो जानता है उसे रोक कर स्वयं ऑपरेशन करे तो उसको महापाप लगेगा। ऐसे अनजान अनाड़ी व्यक्ति के द्वारा किया हुआ 'ऑपरेशन कदाचित् सुधर भी जाय तो भी वह पाप का भागी होगा और अनधिकृत काम करने के कारण सरकार भी उसे अपराधी मानेगी। उस पहले डॉक्टर को कराने पर भी महापाप लगा, दूसरे को कराने पर भी अल्प पाप लगा और तीसरे को स्वयं करने पर भी महापाप लगा। इसका कारण यही है कि इन तीनों में विवेक का अन्तर है। अब करने, कराने और अनुमोदन में से किसमें पाप अधिक हो सकता है, यह विचारें। कोई व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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