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________________ | जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006|| हिंसादि करवाता है तथापि उनके साथ रहने के कारण उनके द्वारा की गई हिंसादि से संसर्ग दोष ही नहीं लगता, कभी-कभी उसे गृहस्थ सम्बन्धी कार्य के लिये प्रेरणा भी देनी पड़ती है। उदाहरणार्थ- दो करण तीन योग से व्रत स्वीकार करने वाले ने किसी से कहा- उठो, भोजन कर लो। किन्तु खाने वाला राज्याधिकारी है और अभक्ष्य भोजी है, उसे वह सात्त्विक भोजन खिलाकर अपनी ओर मोड़ भी सकता है। इसी प्रकार कोई राज्याधिकारी है, वह उक्त श्रावक के यहाँ ठहरा है, भोजन करने के लिए वह स्वयं होटल में जाकर अभक्ष्य पदार्थ खाता है, या अपेय पदार्थ पीता है। अब अगर वह श्रावक उसके साथ सर्वथा सम्बन्ध तोड़ ही देता है तो क्लेश वृद्धि की संभावना है। सम्बन्ध रखकर तो उसे सन्मार्ग पर लाया भी जा सकता है। सम्बन्ध तोड़ देने पर तो उसका अधिक पापी होना संभव है। इस प्रकार अनुमोदन का त्याग करने में श्रावक के लिये अड़चन तो आती है, लेकिन व्यावहारिक कार्य रुकते नहीं और अहिंसक श्रावक के सम्पर्क से हिंसक व्यक्ति भी सुधर जाता है। ___ मगध के महामंत्री अभयकुमार ने काल सौकरिक के पुत्र से मित्रता का संबंध जोड़ा था। अभयकुमार श्रावक था। वह जानता था कि इसका पिता कसाई है और कसाईपन छोड़ नहीं सकता, फिर भी काल सौकरिक के पुत्र में जीवन सुधार की लगन देखकर उससे संबंध कायम रखा। परिणामस्वरूप उसका जीवन सुधर गया। उपासकदशांग सूत्र में महाशतक श्रावक का वर्णन है। उसकी तेरह पत्नियों में से रेवती अत्यन्त क्रूर थी। उसने अपनी सौतों को विष प्रयोग और शस्त्र प्रयोग से मार डाला था। रेवती जैसी क्रूर स्त्री मिल जाने पर व्रतधारी श्रावक क्या कर सकता है? जरा गहराई से सोचने का विषय है। वर्तमान युग में प्रायः अविवेकी लोग ऐसी स्त्री को या तो मार डालते हैं या घर से बाहर निकाल देते हैं या उसे जाति से बहिष्कृत कर देते हैं। फिर चाहे वह विधर्मी बनकर या दुराचारिणी बनकर उससे भी अधिक पापकर्म क्यों न कमाए। मगर महाशतक दूरदर्शी श्रावक था। उसे रेवती की सब करतूतों का पता था, परन्तु उस समय की सामाजिक परिस्थिति के अनुसार महाशतक ने न तो उसे मारा और न उसे घर से बाहर निकाला। महाशतक ने सोचा होगा कि रेवती हिंसक होते हुए भी व्यभिचारिणी नहीं है। मेरे प्रति इसकी भक्ति है। मैं इसका वध तो कर ही नहीं सकता, क्योंकि मैंने दो करण तीन योग से हिंसा का त्याग किया है। अगर इसे घर से निकाल दिया गया तो संभव है यह व्यभिचारिणी बन जाय और अधिक हिंसक भी बन जाय। तब तो दोनों कुलों को बदनाम करेगी। संभव है, इस विचार से महाशतक ने रेवती को घर से न निकाला होगा। उन्होंने स्वयं ही विरक्त होकर श्रावक प्रतिमा ग्रहण कर ली। फिर भी वे गृहस्थाश्रम को त्याग न सके, अतः रेवती के साथ रहने से संवासानुमोदन पाप से वे बच नहीं सकते थे। इसलिये दो करण, तीन योग से ही उन्होंने व्रत लिये। गृहस्थ श्रावक अपना जाति से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद नहीं कर सकता और न जाति के लोगों के लिए वह इस बात का जिम्मा ले सकता है कि वे लोग न स्थूल हिंसा करेंगे और न करायेंगे। जो हिंसा करते-कराते हैं, उनके साथ सम्बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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