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||15,17 नवम्बर 2006
जिनवाणी जिनवाणी
151 की तैयारी करना अतिचार है। अधिक रख लेने से तो व्रत ही भंग हो जाता है, अतः तैयारी करना ही अधिक संगत लगता है जो पाँचों के लिए उपयुक्त है। २. हिरण्णसुवण्णप्पमाणाइक्कमे- हिरण्ण =चाँदी, सुवण्ण-सोना। सोने-चाँदी की जितनी मर्यादा रखी है, उससे अधिक रखने की तैयारी करना अतिचार है। ३. धनधान्यप्पमाणाइक्कमे- धन =रुपये, धान्य-अनाज। धन और विविध प्रकार के धान्यों की जो मर्यादा रखी है, उससे अधिक रखने की तैयारी करना अतिचार है। ४. दुप्पयचउप्पयप्पमाणाइक्कमे- दुप्पय-नौकर, चउप्पय=पशु। नौकर, पशु आदि की जो मर्यादा रखी है, उससे अधिक रखने की तैयारी करना अतिचार है। . ५. कुवियप्पमाणाइक्कमे- कुविय-सोना-चाँदी के सिवाय अन्य धातु, फर्नीचर आदि वस्तुओं की जो मर्यादा रखी है, उससे अधिक रखने की तैयारी करना अतिचार है।
पाँचों अणुव्रतों की निरतिचार परिपालना से जीवन अहिंसक, प्रामाणिक व धार्मिक बनता है, अतः अतिचारों के स्वरूप व उनकी प्रासगिकता को समझकर उनसे बचना चाहिए।
-प्राचार्य, श्री महावीर जैन स्वाध्याय पीठ, व्यंकटेश मंदिर के पीछे, गणपति नगर, जलगांव
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