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________________ ६२ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री ४. उपयोगात्मा ५. ज्ञानात्मा ६. दर्शनात्मा चेतना की अनुभूति की अवस्था चेतना की संकल्पनात्मक शक्ति ७. चारित्रात्मा - ८. वीर्यात्मा चेतना की क्रियात्मक शक्ति उपर्युक्त आठ प्रकारों में द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा और दर्शनात्मा ये चार तात्त्विक आत्मा के स्वरूप की ही द्योतक हैं। शेष चार- कषायात्मा, योगात्मा, चारित्रात्मा और अपेक्षा विशेष से वीर्यात्मा- ये चारों आत्मा के अनुभवाधारित स्वरूप की निदर्शक हैं। तात्त्विक आत्मा द्रव्य की अपेक्षा से नित्य होती है, यद्यपि उसमें ज्ञानादि की पर्याएं होती रहती हैं। अनुभवाधारित आत्मा चेतना की शरीर से युक्त अवस्था है। यह परिवर्तनशील एवं विकारयुक्त होती है। आत्मा की ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक शक्तियाँ चेतना की विवेक और तर्कशक्ति भारतीय परम्परा में बौद्धदर्शन ने आत्मा के अनुभवाधारित परिवर्तनशील पक्ष पर अधिक बल दिया है, जबकि सांख्य और शांकर वेदान्त ने आत्मा के तात्त्विक स्वरूप पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित की है। जैनदर्शन दोनों ही पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है। आत्मा के इन आठ प्रकारों की चर्चा मात्र भगवतीसूत्र में ही देखने को मिलती है, उपाध्याय यशोविजयजी ने इन भेदों की चर्चा नहीं की है। उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा आत्मा के सम्बन्ध में अन्य दार्शनिकों के मतों की समीक्षा : भारतीय दर्शनों में आत्मा के विषय में भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। कोई आत्मा के अस्तित्त्व को ही नहीं स्वीकारते हैं, तो कोई आत्मा को नश्वर मानते हैं। कोई बुद्धि को, कोई इन्द्रिय या मन को और कोई विज्ञान-संधान को आत्मा समझता है। कोई आत्मा को नित्य मानते हैं। कोई आत्मा कर्म का कर्त्ता और भोक्ता भी आत्मा नहीं है ऐसा मानते हैं। वस्तुतः चार्वाक, बौद्ध, सांख्य, नैयायिक आदि दर्शनों में आत्मा की अवधारणा, युक्तिसंगत नहीं है । उपाध्याय यशोविजयजी ने गहन चिंतन करके इन सभी मतों की समीक्षा की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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