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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ८३ शांतसुधारस में उपाध्याय विनयविजयजी ने दान, शील, तप और भावये चार प्रकार के धर्म बताए हैं। यह धर्म के चार पाए हैं। मुनि समयसुंदर ने भी अपनी सज्झाय में धर्म के चार प्रकार बताए हैं। अपने धन या सुख-सुविधा के साधनों को निस्वार्थ भाव से दूसरों के हित के लिए उपयोग करना दान कहलाता है, उसमें भी अभयदान का विशेष महत्त्व है। धर्म का दूसरा पाया ब्रह्मचर्य है। तीसरा पाया तप है, यह बारह प्रकार का होता है। छः बाह्य तथा छः आभ्यंतर तप से अचिंत्य आत्मशक्ति प्रकट होती है। दान की शोभा, शील की महत्ता, तप की श्रेष्ठता भाव पर आधारित है। भोजन में जो स्थान नमक का है, वही स्थान धर्म में भाव का है। आत्मकेन्द्रित होकर यदि इन धर्मों का पालन किया जाए, तो वह अध्यात्म की श्रेणी में आता है। उपाध्याय यशोविजयजी ने अध्यात्मसार में कहा है- "ज्ञान तथा क्रिया-दोनों रूपों में अध्यात्म रहा हुआ है। जिनके आचरण में छल-कपट नहीं है, ऐसे जीवों में अध्यात्म की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।"५५ ___आचार्य हेमचंद्र धर्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं-“दुर्गति में गिरते हुए प्राणी की जो रक्षा करे, वही धर्म है। धर्म की इस व्याख्या में भी शुभ अनुष्ठान और संयम दोनों ही आते हैं।६६ यहाँ अभी तक जो भी धर्म की व्याख्या उधत हैं वे सब किसी न किसी रूप से सदाचरण या अनुष्ठान से संबंधित हैं। यदि मात्र बाह्यदृष्टि से इनका पालन होता है, तो चाहे इन्हें व्यवहारधर्म कहा जा सके, किन्तु वस्तुतः ये धर्म या अध्यात्म नहीं हैं। __ अब हम धर्म की वह व्याख्या प्रस्तुत करेगें, जहाँ धर्म और अध्यात्म एक हो जाते हैं। दानं च शीलं च तपश्चभावो धर्मश्चतुर्धा जिनबान्धवेन निरूपितो यो जगतां हिताय स मानसे में रमताभजनम -१२६, दसवीं धर्मभावना-शांतसुधारस-उपाध्याय विनयविजयजी एवं ज्ञानक्रियास्वरूपमध्यात्मं व्यवतिष्ठते एतत् प्रवर्धमानं स्यान्निर्दम्भाचारशालिनाम।।२६।। -अध्यात्मसार - उ. यशोविजयजी दुर्गतिप्रपतत्प्राणि धारणाद्धर्म उच्यते संयमादिर्दशविधः सर्वज्ञोक्तो विमुक्तये ।।११।। -योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश -हेमचन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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