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७२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
सेवा-यह तीन सम्यग्दृष्टि के लिंग बताए हैं और ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव को अध्यात्म का अधिकारी बताया है।७२ चारित्रवान् के लक्षण :
चारित्रवान् व्यक्ति मार्गानुसारी, श्रद्धावान्, प्रज्ञापनीय, क्रिया में तत्पर, गुणानुरागी और स्वयं की शक्ति अनुसार धर्मकार्य को करने वाला होता है।
__ चारित्रवान् आत्मा देशविरति और सर्वविरति के भेद से अनेक प्रकार की होती है और वे अध्यात्म की अधिकारी हैं।
योगबिंद ग्रंथ में बताया गया है कि अध्यात्म से ज्ञानावरण आदि क्लिष्ट कर्मों का क्षय, वीर्योल्लास, शील और शाश्वत ज्ञान प्राप्त होता है। यह अध्यात्म ही अमृत है।
अध्यात्म तत्त्वालोक में न्यायविजयजी ने भी कहा है- “समुद्र की यात्रा में द्वीप, मरुभूमि में वृक्ष, घोर अंधेरी रात्रि में दीपक और भयंकर ठंड के समय अग्नि की तरह इस विकराल काल में दुर्लभ ऐसे अध्यात्म को कोई महान् भाग्यशाली मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है।"४३
इच्छाओं और आकांक्षाओं के कारण हमारा चित्त उद्विग्न एवं मलिन है।
अध्यात्म के अधिकारी विषय विवेचन के बाद अध्यात्म के विभिन्न स्तरों का विवेचन किया जा रहा है।
तरूण सुखी स्त्रीपरिवर्यो रे, चतुर सुणे सुरगीत। तेहथी रागे अतिघणे रे, धर्मसुण्या नी रीत रे। प्राणी ।।१२ भूख्यो अखी उतर्यो रे, जिम द्विज घेवर चंग। इच्छे तिम जे धर्म ने रे, तेहि ज बीजु लिंग रे। प्राणी।।१३
-सम्यक्त्व के ६७ बोल की सज्झाय-उ. यशोविजयजी द्वीपं पयोधौ फलिनं मरौ व दीपं निशायां शिखिनं हिमे च । कली कराले लभते दुरापमध्यातमतत्त्वं बहुभागधेयः।।५।। - अध्यात्म तत्त्वालोक -न्यायविजयजी
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