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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ५१ उदासीनता कैसी होती हैं? और उसमें उनकी आत्मदष्टि बहिरात्मभाव में से निकलने के लिए कितनी उपकारक होती है; आदि का वर्णन है। आत्मज्ञानी के लिए संसार मात्र पुद्गल का मेल है। आत्मज्ञाने मगन जो, सो सब पुद्गल खेल इन्द्रजाल करि लेखिवे मिले, न तिहाँ मनमेल भवप्रपंच मन जाल की बाजी झूठी मूल चार पाँच दिन खुश लगे, अंत धूल की धूल।। इस प्रकार उपाध्यायजी ने गुजराती भाषा में भी विपुल साहित्य की रचना की है। उनकी साहित्य-साधना का विशिष्ट परिचय उनकी साहित्य-साधना के इस संक्षिप्त परिचय से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने विविध विषयों पर विविध भाषाओं में ग्रन्थों की रचना की है। इससे उनकी बहुश्रुतता का पता चल जाता है। इस संक्षिप्त विवरण के अवलोकन से यह भी स्पष्ट होता है कि उन्होंने न केवल जैनधर्म, दर्शन और साधना की विविध विधाओं पर अपने ग्रंथ की रचना की और टीकाएँ लिखीं, अपितु योगसूत्र पर भी टीका लिखी। जहाँ एक और वे दर्शन की अतल गहराइयों में उतरकर नव्यन्याय की शैली में स्वपक्ष का मंडन और परपक्ष का खंडन करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपनी समन्वयवादी दृष्टि का परिचय भी देते हुए परपक्ष की अच्छाइयों को भी उजागर करते हैं। अनेकान्त के सिद्धान्त पर उनकी अनन्य आस्था थी। यह प्रायः उनकी सभी कृतियों से फलित होता है। दर्शन, काव्य साधना और आत्मसाधना-तीनों ही पक्ष उनकी कृतियों में देखे जाते हैं। यशोविजयजी ने अपनी टीकाओं में मूलग्रन्थों का आश्रय तो लिया ही है, किंतु इसके साथ-साथ वे विविध दर्शनों में समन्वय का प्रयत्न करते हैं। इस क्षेत्र में उन्होंने अनेकांत दृष्टि को प्रमुखता दी है और यह बताया है कि प्रकारान्तर से सभी दर्शन कहीं न कहीं अनेकान्तवाद को स्वीकार करके चलते हैं। उनकी यह स्पष्ट मान्यता है कि कोई भी दर्शन अनेकान्त का त्याग करके अपनी स्थापना नहीं कर सकता है। इससे ऐसा लगता है कि उपाध्याय यशोविजयजी पर आचार्य हरिभद्र का स्पष्ट प्रभाव रहा हुआ है। यही कारण है कि उन्होंने हरिभद्र के योग सम्बन्धी ग्रंथों पर विशेष रूप से टीकाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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