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५०/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
यशोविजयजी ने कितने ही स्वतनों की रचना अलग-अलग राग रागिनियों में की है। उनकी भाषा व्रज है।
x. सज्झाय - ___ यशोविजयजी ने सम्यक्त्व के सड़सठ बोल की सज्झाय, अठारह पापस्थानक की सज्झाय, प्रतिक्रमण हेतु गर्भित सज्झाय, ग्यारहवें अंग की सज्झाय, आठ योगदृष्टि की सज्झाय, चार आहार की सज्झाय, संयम श्रेणी विचार सज्झाय, गुणस्थानक सज्झाय इत्यादि सज्झायों की रचना की है। ये सभी सज्झाएं उनके गहन शास्त्रज्ञान तथा गम्भीर गहरा चिंतनशीलता का आभास कराती है।
गुजराती भाषा में गद्य और पद्य में लिखी अन्य कृतियाँ -
१. समुद्र-वाहन संवाद - संवत् १७१७ में घोघा बंदर में इसकी रचना की। इसमें १७ ढाल तथा ३०६ गाथाएँ हैं। इस कृति में यशोविजयजी ने समुद्र और वाहन के बीच सटीक संवाद तथा वाहन ने समुद्र का गर्व किस तरह भंग किया उसका आलेखन किया है।
२. समताशतक - समताशतक में १०५ दोहे हैं। समता मग्नता, उदासीनता की साधना कैसे करना? क्रोध मान, माया, लोभ ये चार कषाय तथा विषयरूपी अंतरंग शत्रुओं पर कैसे विजय प्राप्त करना आदि विषयों का वर्णन इस शतक में किया है।
यशोविजयजी ने कृति का आरंभ करते हुए लिखा है - १. समता गंगा-मग्नता, उदासीनता जात
चिदानंद जयवंत हो केवल भानु प्रभात
सिद्ध औषधि ईक क्षमा, ताको करो प्रयोग,
__ज्यु मिट जाये मोह घर, विषय क्रोध ज्वर रोगा। समाधिशतक -
इस कृति में १०४ दोहें हैं। इसमें संसार की माया जीवों को किस तरह भटकाती है और आत्मज्ञानी उसमें से किस तरह मुक्त होते हैं; ज्ञानी की
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