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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४६ किया है तथा जिनप्रतिमा की पूजा को सिद्ध करने वाले प्राचीन व्यक्तियों के अनेक दृष्टांत दिए हैं। VI. साढ़े तीन सौ गाथा का स्तवन - यह सिद्धान्त विचार रहस्य गर्भित सीमंधर जिन स्तवन है। ३५० गाथा के इस स्तवन में यशोविजयजी ने सीमंधर स्वामी से शुद्ध मार्ग बताने की विनती की है। इस कलियुग में लोग अंधश्रद्धा में फंस रहे हैं। सूत्र से विरुद्ध आचरण कर रहे हैं। अज्ञानी लोगों की अंधश्रद्धा और कुगुरु के वर्तन पर सख्त प्रहार किया गया है। कोई भी व्यक्ति मात्र कष्ट सहकर ही मुनि हो जाता है, जो ऐसा मानते हैं उनके लिए लिखा गया है। जो कष्टे मनिमारग पावे, बलद थाय तो सारो भार वहे जे तावड़े भमतो खमतो गाढ़ प्रहारो VII. मौन एकादशी का स्तवन - यह परमात्माओं के ढेढ़ सौ (१५०) कल्याणकों का स्तवन है। इस स्तवन में १२ ढाल और ६३ गाथाएँ हैं। VII. तीन चौबीसी - पहली चौबीसी में २४ तीर्थंकरों के माता-पिता, नगर, लांछन, आयुष्य आदि का परिचय दिया है। दूसरी चौबीसी में और तीसरी चौबीसी में तीर्थकरों के गुणों का उपमा आदि अलंकारों द्वारा वर्णन किया गया है और स्वयं पर कृपा करने के लिए उनसे विनती की है। Ix. विहरमान बीस जिनेश्वर के स्तवन - विहरमान बीस जिनेश्वर के बीस स्तवन में जिनेश्वर के प्रति चोलमजिठ के समान प्रीति व्यक्त की है और प्रभुकृपा की याचना करते-करते अंतिम एक दो कड़ी में जिनेश्वर के माता-पिता, लांछन आदि का स्मरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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