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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४७ कर सकें। यह निश्चय करके तुरंत ही उन्होंने समकित के ६७ बोल की सज्झाय की रचना की और उसे कंठस्थ भी कर ली। दूसरे दिन प्रतिक्रमण में सज्झाय बोलने का आदेश लिया और सज्झाय बोलना शुरु की। सज्झाय बहुत ही लम्बी थी, इसलिए श्रावक अधीर होकर पूछने लगे- "अभी और कितनी बाकी है तब यशोविजयजी ने कहा- “भाई तीन वर्ष तक घांस काटा। आज पूले बांध रहा हूँ। इतने पूले बांधने में समय तो लगेगा ही।" श्रावक बात को समझ गए और उन्होंने यशोविजयजी को जो उपालम्भ दिया था उसके लिए माफी मांगने लगे।
यशोविजयजी की तीक्ष्ण बुद्धि और तेजस्विता का वहाँ के श्रावकों को भी परिचय हुआ।
गुर्जर भाषा में रचनाएँरासकृतियाँ :
I. जंबूस्वामी का रास -
__ यशोविजयजी की गुजराती भाषा में रची सबसे बड़ी और महत्त्व की कृति जंबूस्वामी का रास हैं। इसमें पाँच अधिकार और ३७ ढाल है। इसकी रचना कवि ने खंभात में वि. संवत् १७३६ में की थी। इस रास में भाषा-लाधव सहित प्रसंगों और पात्रों का अलंकारयुक्त सटीक मार्मिक निरूपण किया गया है।
II. द्रव्यगुणपर्याय का रास -
यशोविजयजी ने सतरह ढालों और २८४ गाथाओं में इस रास की रचना की है। द्रव्यगुणपर्याय के रास में जैन तत्त्वज्ञान का पद्य में निरूपण किया है। मध्यकालीन साहित्य की यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इस रास की वि.सं. १७११ यशोविजयजी के गुरु नयविजयजी के हाथ से सिद्धपुर में लिखी हुई हस्तप्रति मिलती है। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि इस रास की रचना संवत् १७०८ के आसपास हुई होगी। इस रास में कवि ने तत्त्वज्ञान को कविता में उतारने का प्रयत्न किया है।
इसमें द्रव्य, गुण और पर्याय के लक्षण, स्वरूप इत्यादि का निरूपण अनेक मतमतांतर और दृष्टांत तथा आधार ग्रंथों का उल्लेख
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