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४६ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
पतंजलयोगसूत्र टीका
पतंजलि के योगसूत्र के कुछ सूत्रों पर जैनदृष्टि से व्याख्या एवं समीक्षा की गई है।
प्रस्तुत
99.
१०.
स्याद्वादरहस्य
हेमचन्द्रसूरि के वीतरागस्तोत्र के अष्टम प्रकाश में अन्तर्निहित रहस्य के द्योतनार्थ एवं उसके अन्तर्गत शान्तरस का आस्वादन करने के लिए उपाध्याय यशोविजयजी ने स्याद्वाद रहस्य प्रकरण बनाया । अष्टम प्रकाश को नव्यन्याय की परिभाषा से परिप्लावित करने के लिए यशोविजयजी के हृदय में इतनी उमंग और उल्लास उत्पन्न हुआ कि उसी के फलस्वरूप उन्होंने इसी अष्टम प्रकाश पर जघन्य मध्यम एवं उत्कृष्ट परिमाण वाले स्याद्वाद रहस्य नाम के तीन प्रकरण रचे और स्याद्वाद का सूक्ष्मरहस्य प्रकट किया।
१२.
काव्यप्रकाश टीका
१३.
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यह मम्मटकृत काव्यप्रकाश ग्रंथ की टीका है। न्यायसिद्धान्त मंजरी
यह स्याद्वादमंजरी पर लिखी गई टीका है।
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गुर्जर साहित्य की रचना के विषय में
दंतकथा -
उपाध्याय यशोविजयजी ने संस्कृत और प्राकृत की अनेक विद्वद्भोग्य कृतियों की रचना की। इसी के साथ उन्होंने गुजराती भाषा में भी अनेक कृतियों की रचना की। अनेक लोकभोग्य स्तवन सज्झाय, रास, पूजा, टबा इत्यादि उनकी कृतियाँ हैं। इस विषय में यह दंतकथा प्रचलित है कि यशोविजयजी काशी से अभ्यास पूरा करके अपने गुरु के साथ विहार करते हुए एक गाँव में आए। वहाँ शाम को प्रतिक्रमण में किसी श्रावक ने नयविजयजी से विनंती की कि आज यशोविजयजी सज्झाय बोलें। तब यशोविजयजी ने कहा कि उन्हें कोई सज्झाय कंठस्थ नहीं है। यह सुनकर एक श्रावक ने आवेश में उपालम्भ देते हुए कहा कि तीन वर्ष काशी में रहकर क्या घांस काटा? तब यशोविजयजी मौन रहे। उन्होंने विचार किया कि संस्कृत और प्राकृत भाषा सभी लोग तो समझते नहीं हैं, इसलिए लोकभाषा गुजराती में भी रचना करना चाहिए, जिससे अधिक लोग बोध प्राप्त
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