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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यालवाद / ४५ ग्यारहवें में शास्त्रप्रमाण्य को स्थिर करने के लिए शब्द और अर्थ के मध्य सम्बन्ध नहीं मानने वाले बौद्धमत का प्रतिकार किया गया है।
इन सभी स्तबकों में मुख्य विषय के निरूपण के साथ अनेक अवान्तर विषयों का भी निरूपण किया गया है, जिनमें अन्त में स्त्रीवर्ग की मुक्ति का निषेध करने वाले जैनाभास दिगम्बर मत की गंभीर आलोचना की गई है। उपाध्यायजी ने अपनी स्याद्वादकल्पलता में जैनेतर दार्शनिकों के अनेकमतों की बड़ी गहरी समीक्षा की है।
उत्पादादिसिद्धि
४.
इसके मूलकर्त्ता चन्द्रसूरि हैं। इसमें जैनशास्त्रों के अनुसार सत् के उत्पादव्ययधोव्यात्मक लक्षण पर विशद प्रकाश डाला गया है। यशोविजयजी द्वारा विरचित टीका पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं हो रही है।
५.
कम्मपयडि हट्टीका
यह जैन कर्मसिद्धान्त के मूल ग्रंथ कम्मपयड़ी पर लिखी गई टीका है।
कम्मपयडि लघु टीका -
इस टीका का प्रारम्भिक पत्र मात्र उपलब्ध होता है। अतः इसके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देना संभव नहीं है। यह संभव है कि उपाध्याय यशोविजयजी इस रचना को पूर्ण ही न कर पाएं हो ।
७.
तत्त्वार्थ सूत्र
इस टीका ग्रंथ में तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय पर प्रकाश डाला गया है।
६.
८.
६.
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स्तवपरिज्ञा अवचूरि -
इसमें द्रव्यभावस्तव का स्वरूप संक्षेप में बताया गया है।
अष्टसहस्त्री टीका
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यह दिगम्बर विद्वान् विद्यानन्दी के अष्टसहस्त्री ग्रंथ का ८००० श्लोक परिमाण व्याख्या ग्रंथ है, जिसमें दार्शनिक विविध विषयों की चर्चा है।
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