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४२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
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उपाध्याय यशोविजयजी ने योगदीपिका नाम की टीका रची। यह सुंदर टीका मूल ग्रंथ के रहस्यों को उद्घाटित कर ग्रंथ के रहस्य को स्पष्ट करती है। यह १६-१६ आर्याश्लोक में रचित है। इसके १६ अधिकार हैं। सद्धर्मपरीक्षा षोडशक -
इसमें साधकों की बाल, मध्यम और पंडित-ऐसी तीन कक्षाएँ बताई गई हैं। धर्मलक्षण षोडशक -
इसमें प्रणिधान, प्रवृत्ति, विघ्नजय, सिद्धि, विनियोग-ऐसे पाँच सुंदर आशयों का वर्णन किया गया है। धर्मलिंग षोडशक -
इसमें शम, संवेग, निर्वेद, आस्तिक्य अनुकंपा आदि सम्यक्त्व के पाँच लक्षण बताए गए हैं। लोकोत्तरतत्त्वसंप्राप्ति षोडशक -
धर्मलिंगों से युक्त धर्म (सम्यग्दर्शन) सिद्ध होने पर लोकोत्तर तत्त्व की प्राप्ति होती है। यह प्राप्ति चरमपुद्गल परावर्त में हो सकती है। जिनभवन षोडशक -
इसमें मंदिर बनवाने वाला व्यक्ति मंदिर की भूमि, मंदिर की लकड़ी आदि सामग्री कैसी होनी चाहिए, यह बताया है। जिनबिंब षोडशक -
इसमें जिनबिंब भराने की विधि, फल आदि बातों पर प्रकाश डाला गया है। प्रतिष्ठा षोडशक -
___ इसमें जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा का स्वरूप प्रकार हेतु आदि की प्ररूपणा की गई है।
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