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________________ ४२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री २. ४. उपाध्याय यशोविजयजी ने योगदीपिका नाम की टीका रची। यह सुंदर टीका मूल ग्रंथ के रहस्यों को उद्घाटित कर ग्रंथ के रहस्य को स्पष्ट करती है। यह १६-१६ आर्याश्लोक में रचित है। इसके १६ अधिकार हैं। सद्धर्मपरीक्षा षोडशक - इसमें साधकों की बाल, मध्यम और पंडित-ऐसी तीन कक्षाएँ बताई गई हैं। धर्मलक्षण षोडशक - इसमें प्रणिधान, प्रवृत्ति, विघ्नजय, सिद्धि, विनियोग-ऐसे पाँच सुंदर आशयों का वर्णन किया गया है। धर्मलिंग षोडशक - इसमें शम, संवेग, निर्वेद, आस्तिक्य अनुकंपा आदि सम्यक्त्व के पाँच लक्षण बताए गए हैं। लोकोत्तरतत्त्वसंप्राप्ति षोडशक - धर्मलिंगों से युक्त धर्म (सम्यग्दर्शन) सिद्ध होने पर लोकोत्तर तत्त्व की प्राप्ति होती है। यह प्राप्ति चरमपुद्गल परावर्त में हो सकती है। जिनभवन षोडशक - इसमें मंदिर बनवाने वाला व्यक्ति मंदिर की भूमि, मंदिर की लकड़ी आदि सामग्री कैसी होनी चाहिए, यह बताया है। जिनबिंब षोडशक - इसमें जिनबिंब भराने की विधि, फल आदि बातों पर प्रकाश डाला गया है। प्रतिष्ठा षोडशक - ___ इसमें जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा का स्वरूप प्रकार हेतु आदि की प्ररूपणा की गई है। ७. ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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