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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३६
१०. न्यायखण्डनखण्डखाद्य
५५०० श्लोक परिमाण का यह ग्रंथ नव्यन्याय शैली का विशिष्ट ग्रंथ है। अर्थगंभीर्य की अपेक्षा जटिल ग्रंथ है। यह उपाध्यायजी के उच्चकोटि के पांडित्य की प्रतीति कराता है। ११. न्यायालोक
__उपाध्याय यशोविजयजी ने न्यायालोक में मुख्यतया गौतमीयन्याय शास्त्र तथा बौद्धन्याय शास्त्र के सर्वथा एकांतगर्भित सिद्धान्तों की विस्तृत समालोचना या समीक्षा कर जैनन्याय के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। इस प्रकरण ग्रंथ के तीन प्रकाश हैं। प्रथम प्रकाश में चार वादस्थलों का वर्णन किया गया है। इसमें प्रथम मुक्तिवाद, द्वितीय आत्मविभुत्ववाद, तृतीय आत्मसिद्धि तथा चतुर्थवादस्थल ज्ञान का पर-प्रकाशत्व खण्डनवाद स्थल का निरूपण है।
द्वितीय प्रकाश में भी कुल चार वादस्थल हैं(१) ज्ञानाद्वैतखंडन
(२) समवाय निरसनवाद (३) चक्षुअप्राप्यकारितावाद और (४) अभाववाद
ततीय प्रकाश में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि षद्रव्यों और उसी प्रकार उनकी पर्यायों का संक्षिप्त निरूपण किया गया है। १२. वादमाला -
वादमाला नामक यह ग्रंथ उपाध्यायजी ने तीन भागों में बनाया हैं।
प्रथमवादमाला में स्वत्ववाद, सन्निकर्षवाद, विषयतावाद आदि का समावेश किया गया है।
द्वितीय वादमाला में वस्तुलक्षण विवेचन, सामान्यवाद, विशेषवाद, इन्द्रियवाद, अतिरिक्त शक्ति पदार्थवाद, अदृष्टसिद्धिवाद- इन छ: वादस्थलों का समावेश है।
तृतीय वादमाला में चित्ररूपवाद, लिंगोपहित, लैंगिक, भानवाद द्रव्यनाशहेतुताविचारवाद, सुवर्णतेजसत्वातैजसत्ववाद, अंधकारभाववाद, वायुस्पार्शनप्रत्यक्षवाद और शब्दनित्यत्वानित्यवाद- इन सात वादस्थलों का संग्रह है।
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