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३८ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
अध्यात्मोपनिषद्
इस ग्रंथ की रचना संस्कृत में अनुष्टुप छंद में की गई है। इसमें २३१ श्लोक हैं तथा इसके चार अधिकार हैं- ( १ ) शास्त्रयोगशुद्धि अधिकार (२) ज्ञानयोगाधिकार (३) क्रियाधिकार ( ४ ) साम्याधिकार । इन विषयों पर गहराई से चिंतनपूर्वक लिखा गया है।
देवधर्म परीक्षा
३.
४.
में
४२५ श्लोक परिमाण में इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसमें देव स्वर्ग प्रभु की प्रतिमा की पूजा करते हैं, इस बात का आगमों के आधार पर समर्थन भी किया गया है। इस प्रकार इसमें प्रतिमापूजा को नहीं मानने वाले स्थानकवासी मत की समीक्षा की गई है।
५.
जैनतर्क परिभाषा
इस ग्रंथ की रचना यशोविजयजी ने ८०० श्लोक परिमाण में, नव्यन्याय की शैली में की है। इसके - (१) प्रमाण ( २ ) नय ( ३ ) निक्षेप नाम के तीन परिच्छेद हैं, जिसमें इन विषयों का युक्तिसंगत निरूपण किया गया है।
यतिलक्षणसमुच्चय
इस ग्रंथ में यशोविजयजी ने प्राकृत में २६३ ग्रंथाग्रों में साधु के सात लक्षणों का विस्तार से विवेचन किया है।
नयरहस्य
इस ग्रंथ में नैगम आदि सात नयों का स्वरूप समझाया गया है।
नयप्रदीप
८०० श्लोक परिमाण का यह ग्रंथ संस्कृत गद्य में रचा गया है। यह ग्रंथ सप्तभंगी समर्थन और नयसमर्थन नामक दो सगों में विभाजित है।
६.
७.
८.
ज्ञानबिंदु
१२५० श्लोकों में इस ग्रंथ की रचना की गई है। इस ग्रंथ में कर्त्ता ने ज्ञान के प्रकार, लक्षण स्वरूप आदि की विस्तार से मीमांसा की है।
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