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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३७ (१४) भाषा रहस्य - प्रज्ञापनादि उपांग में प्रतिपादित भाषा में अनेक भेद-प्रभेदों का इस ग्रन्थ में विस्तृत वर्णन है। (१५) समाचारी प्रकरण इस ग्रंथ में इच्छा, मिथ्यादि दशविध साधुसमाचारी का तर्कशैली से स्पष्टीकरण है। स्वोपज्ञ टीकासहित ग्रन्थ१. ज्ञानसार - इस ग्रंथ की रचना यशोविजयजी ने ३२ अष्टकों में की है। प्रत्येक अष्टक में आठ श्लोक हैं। उन अष्टक के नाम निम्न प्रकार के हैं- (१) पूर्णताष्टक (२) मग्नताष्टक (३) स्थिरताष्टक (४) मोहत्यागाष्टक (५) ज्ञानाष्टक (६) शमाष्टक (७) इन्द्रियजयाष्टक (८) त्यागाष्टक () क्रियाष्टक (१०) तृप्ति अष्टक (११) निर्लेपाष्टक (१२) निःस्पृहाष्टक (१३) मौनाष्टक (१४) विद्याष्टक (१५) विवेकाष्टक (१६) माध्यस्थाष्टक (१७) निर्भयताष्टक (१८) अनात्मशंसाष्टक (१८) तत्त्वदृष्टि अष्टक (२०) सर्वसमृद्धि अष्टक (२१) कर्मविपाक चिंतनाष्टक (२२) भवोद्वेगाष्टक (२३) लोकसंज्ञात्यागाष्टक (२४) शास्त्रदृष्टि अष्टक (२५) परिग्रह त्यागाष्टक (२६) अनुभवाष्टक (२७) योगाष्टक (२८) नियागाष्टक (२६) भावपूजाष्टक (३०) ध्यानाष्टक (३१) तपाष्टक (३२) सर्वनयाश्रयाष्टका ___ आत्मस्वरूप को समझाने के लिए जिन-जिन साधनों की आवश्यकता होती है, उन-उन साधनों का क्रमबद्ध निरूपण किया गया है। इस ग्रंथ पर यशोविजयजी ने स्वयं की बालावबोध (टबों) की रचना की है। २. अध्यात्मसार - उपाध्यायजी ने इस ग्रंथ को मुख्य सात प्रबंधों में बांटा है। इसके २१ अधिकार तथा ६४६ श्लोक हैं। इसमें अध्यात्म का स्वरूप, दंभत्याग, भवस्वरूप, वैराग्यसंभव, वैराग्य के भेद, त्याग, समता, सदनुष्ठान, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, त्याग, योग, ध्यान, आत्मनिश्चय आदि विषयों का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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