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________________ ३६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री (६) अध्यात्ममत परीक्षा - इस ग्रंथ में केवली भुक्ति और स्त्रीमुक्ति का निषेध करने वाले दिगम्बर मत की समीक्षा की गई है। साथ ही इसमें निश्चयनय एवं व्यवहारनय के सम्यक् स्वरूप का निर्णय किया गया है। (७) आराधक विराधक चतुर्भड्रगी - इस ग्रंथ में देशतः आराधक और देशतः विराधक तथा सर्वतः आराधक और सर्वतः विराधक-इन चार विषयों का स्पष्टीकरण किया गया है। (८) उपदेश रहस्य - उपदेशपद ग्रंथ के रहस्यभूत मार्गानुसारी इत्यादि अनेक विषयों पर इस ग्रंथ में प्रकाश डाला गया है। (६) एन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिका - इस ग्रंथ में ऋषभदेव से महावीरस्वामी तक २४ तीर्थंकरों की स्तुतियाँ तथा उनका विवरण है। (१०) कूपदृष्टान्त विशदीकरण - इस ग्रंथ में गृहस्थों के लिए विहित द्रव्यस्तव में निर्दोषता के प्रतिपादन में उपर्युक्त, कूप के दृष्टान्त का स्पष्टीकरण किया गया है। (११) ज्ञानार्णव - इस ग्रंथ में मति-श्रुत-अवधि मनःपर्यव तथा केवलज्ञान इन पाँच ज्ञान के स्वरूपों का विस्तृत प्रतिपादन किया गया है। (१२) धर्मपरीक्षा - इसमें उत्सूत्र प्रतिपादन का निराकरण है। (१३) महावीरस्तव - न्यायखण्डरवाघटीका, बौद्ध और नैयायिक के एकान्तवाद का इस ग्रंथ में निरसन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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